वन प्रवेश....!
कल तो मानों ज़िंदगी शुरू हुई थी,
कब पचास पर गए, पता ही न चला।
कल तक तो पढ़ाई में मशरूफ़ थे,
कब नौकरी में खो गए, पता ही न चला।
कल तक माँ से गिला किया करते थे,
कब बीवी के हो गए, पता ही न चला।
कल तक बच्चों की तरह खेला करते थे
कब बच्चे बड़े हो गए, पता ही न चला।
कल बापू के सफ़ेद बाल गिना करते थे
कब बाल झड़ने लगे, पता ही न चला।
कल ज़िंदगी के हसीं सपने देखा करते थे
कब ज़िंदगी उलझ गई, पता ही न चला।
कल जो औरों को खुशीकेपाठ पढ़ाते थे
कब हसना भूल गए, पता ही न चला।
© Devanshu Patel
Chicago