प्रेम#
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इस तट से उस तट तक सावन हरयाया।
पानी के अधरों को झुकी नभ की काया।
मस्त पवन आंचल छेड कर तंग करे
हर बार मुझे लगा कि तुमने सरकाया।
आंखें थक चुकी तुम्हारा रास्ता तकते,
तू न जाने किस उलझन में भरमाया।
आ जाओ अब तो ऐ प्यारे प्रियतम,
व्याकुल होने लगी मेरी फूल सी काया।
प्रेषिका
डॉ अमृता शुक्ला