अब भी तेरा इंतेज़ार है सब खो जाने के बाद भी
मालूम है दुनिया अलग है फिर भी भी चाह हैं
कौन करता है ऐसा इश्क इस दौर में
या तो मैं मासूम हु या मेरा दिमाग खराब है
तेरे अलावा कुछ सोच ही नहीं पाती
ना अब कोई भी चाहिए मुझे
बस जब तेरे साथ का ख्वाब आता है
तो एक सुकून मिल जाता है
सोचती हु क्या कभी ऐसा हो पाएगा
क्या मेरा इश्क इतना मजबूत है
जो तुम्हे मेरे पास ला पाएगा
जिंदगी भर खोया है मैने
अपनों के लिए बहुत कुछ छोड़ा हैं मैने
पर अब एक शांत सी पुकार निकलती हैं
की एक दिन ये कामिल हो जाए मुझे
वो सारे ख्वाब एक किताब में लिखे हो कही
और हकीकत बन जाए कभी
हर एक दिन साल सा लगता है
कितनी दफे दिल ढूंढता है तुम्हे
फिर भी एक आस सी रहती है
सालों साल बस यू ही इंतेज़ार करने का मन करता है
कभी तो मेरी पुकार सुनी जाएगी
कभी तो मेरे ऊपर भी दया आएगी
या ना भी हुआ तो क्या
अब कही मन लगेगा कहा
खुद को कहा फिर देख पाऊंगी
कहा मैं फिर ऐसी ठहर पाऊंगी
अकेला इंतेज़ार है तो यही सही