क्या है की हम लिखते बहुत है
समझा नही पाते और समझते बहुत है
यह सफर हम से शुरू और हमीं से खत्म होगा
फिर भी राह में प्रतिद्वंदी बहुत है
कभी खुशी तो कभी ग़म
कभी आंसू तो कभी कम
संभाल अपनी आशाओं की गठरी
अभी तो बिखरना बहुत है
शायद प्यार लिखा ना था किस्मत में
वरना तो हम पिघलने वाले बहुत है
हर सत्र हर कविता का
जीवंत रखता है अरमान
समझने वाले तो कम है
वाह! करने वाले वाले बहुत है
दर्द-ए-दिल बयां कर ना पाएंगे
ज़ख्म है भी तो दिखा नही पाएंगे
हाल-ए-दिल छुपाना ये गंदी है आदत
इसीलिए शायद लिखते बहुत है
साक्षी ✍️