कली, गुलाब, पंखुड़ियां देखो सब खिले हुए है।
तुम होश में ,आराम में, होकर डरते हो।
उनके साथ तो देखो कांटे मिले हुए है।
मांझी ने चट्टानों को न जाने कैसे तोड़ा?
इस असमंजस में सब के सब हिले हुए है।
कि प्रेम से जिद्दी पत्थर को कैसे तोड़ा जा सकता है?
इतनी मोहब्बत अंतर मन में कैसे कोई ला सकता है?


-Anand Tripathi

Hindi Shayri by Anand Tripathi : 111851371

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