ये बादल, ये घटा ,ये बिजलियाँ,ये सावन की बूँदें,
मैं तो हरदम तरसा हूँ तेरे इन्तज़ार में आँखें मूँदें,
शामें फीकीं मेरी ,रातें तो हैं अभागन जैसी,
अब के मेरी आँखों में रूत आई है सावन जैसी,
तेरी धानी चुनर दिखती है आज भी सावन की तरह,
हसरत थी मेरी,मैं माँग सजाता तेरी सुहागन की तरह,
तू रूठी है तो अब धूल धूल है सावन मेरे लिए,
कल तक फूल था अब बबूल है सावन मेरे लिए,
तू अपनी सखियों संग झूला झूलना इस सावन,
मेरा क्या है मैं तो फाँसी पर झूल जाऊँगा इस सावन,
तेरा सोलहवाँ सावन मुबारक हो मेरी बहारा तुझको,
अब ये सावन मौंत की नींद सुला रहा है मुझको,
Saroj verma....