अब तब की जिंदगी का
कितना किस्सा लिखूंगा
कल तक की जिंदगी का
कितना हिस्सा दिखूंगा।
माना स्याहा का रंग गाढ़ा है
किंतु पन्ने की उम्र में दीमक का पहरा है
उस दीमक से गर बचा भी लूँ
तो मेरे बाद पन्ने को सहेजेगा कौन
उसको पढकर स्वंय को बर्बाद करेगा कौन।
हाँ! उम्मीदों का आसमान साफ है
किन्तु इस बदलते मौसम में मेघ को रोकेगा कौन
जबतलक मैं-तुम का चक्कर है
उसे आखिर हम करेंगा कौन????
इनसब के बाबजूद भी हमारा मिलना होगा
ओस की टपकती आखिर बूंद में
फटेहाल जर्जर बुरादों की बुनियादी ढांचे की खोज में
कोना आधा कभी पूर्ण चांद में
अधुरे किस्सों के दर्द भरी आवाज़ में
मैं-तुम से आगे निकलकर हम होने के इतिहास में।।
#अनंत