कौन है वो ?
जिसको दया न आई
इस सृष्टि की रचना करते समय।
ऐसे कटु वचनों को सुनकर भी न जाने क्यों मौन है वो ?
कौन है वो ?
जिसने फूके प्राण अस्थि पंजर में।
जीने की दी कला कटीले वन में।
जिसने बोला मंत्र एक करुणा का।
उसने ही दे डाला राह घृणा का।
जो है कण नर नारी शक्ति अंबर में।
जिसकी दृष्टि नाचे सकल चराचर में।
जिसने रास रचाया मधुबन में।
जो भटका जंजाल पास जंगल में।
क्या वो भी हो चुका साक्ष इस मानव युग का।
क्या उसने दिया ज्ञान होगा इस कलयुग का।
वो तो इतना दयावान विश्वाश नही होता मुझको।
हो सकता है ईश्वर अल्लाह में भी बाटा हो खुदको।
लेकिन ऐसा करके उसको क्या मिल जाएगा।
सर्वेश्वर है वो तो ऐसा करके क्या पायेगा।
यहां हमारी जान जा रही है आपस में लड़कर।
वो क्यों चुप बैठा है जिसके खातिर है ये हलचल।
अगर धरातल उसका है तो वो हथियार उठाए न।
लगता है सेना पाली है दोनो ने इंसानों की।
ईश्वर वाला तिलक धारता टोपी है पहचान उसकी।
दोनो ऊपर बैठे बैठे कठपुतली का खेल करे।
यहां वहां हम सब लड़ भिड़कर स्वयं का रिश्तों में बिखरे।
बंजर धरती , सूखे वन में, नदी सुखी सुखी।
एक ओर कुछ चखे मलाई , एक ओर दुनिया भूखी।
कही तरसती माटी जल को,कही जगत ये प्यासा है।
दुनिया एक अंधेरा ख्वाब, चारो ओर निराशा है।
कैसी श्रृष्टि सब कुछ उल्टा पुल्टा है।
ऋतु ,रीति , और राजनीति में सक्रिय सारी जनता है।
बहुत शिकायत तुमसे है , क्षण भर जो सुन लेते तुम। तोड़कर के मौन अपना कुछ आहे ही भर लेते तुम।
हो सकता था कुछ तो राहत मिल ही जाती।
ये दुनिया तुमको एक मानकर मन से अपना बोझ हटाती।
लेकिन तेरी गलती मैं कैसे मानू।
दिया दिमाग बराबर तूने इसको कैसे झुटला दूं।
आनंद त्रिपाठी
लेखक।