लोककीर्ति में केवल आपका समुदाय आपको जनता है और लोकोत्तर कीर्ति में सब आप पर गौरव करते हैं।
यथा अपना जन्म दिवस तो सब मनाते हैं लेकिन श्री राम नवमी पूरी दुनिया मनाती है, श्री कृष्ण जन्माष्टमी सारा संसार मनाता है और तो और अपने अपने घर पर सब अपने नाम की पट्टिका लगाते हैं लेकिन कुछ घरों में आज भी श्री सीताराम सदन लिखा मिलता है। अस्तु! व्यवहार ही तय करता है की आपकी कीर्ति आपके घर तक ही है अथवा बाहर भी है। क्षणिक है अथवा अक्षुण्य। अपने घर में ही आदर है अथवा समाज में भी है। यह विचार बिन्दु हमें हमारे होने के अर्थ को प्रकट करता है।
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