बचपन

इन भीड़ भरे शहरों में क्यों जीवन सूना - सा लगता है
जानें किस आस की चाहत में ये रातों को भी जगता है
जीवन की आपाधापी में उन गांवों को हम छोड़ आए
जिस माटी में बचपन बीता उनसे रिश्ते क्यूं तोड़ आए
बचपन के दिन जब याद आयें नज़रें खोजें उस सूरत को
ममता और स्नेह थीं बरसाती आँखें ढूँढें उस मूरत को
लंबी पगडंडी याद आयें जिनमें दौड़ा अपना बचपन

वो साथी - संगी याद आयें जो हर्षाते थे सबका मन

वो दादी अम्मा याद आए जिनके अमरूद चुराते थे

वो स्वाद दुबारा मिल न सका जो अमृत सा भाते थे

शहरों की भीड़ - भरी दरिया में जब भी मन अकुलाता है

करके बचपन को याद अपना मन भी बच्चा बन जाता है

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Hindi Poem by सुधाकर मिश्र ” सरस ” : 111763734
सुधाकर मिश्र ” सरस ” 2 year ago

धन्यवाद शेखर जी।

shekhar kharadi Idriya 2 year ago

वाह... सुधाकर जी आपने बचपन की पुरानी यादों को फिर से ताज़ा कर दिया...

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