आज गाँव के पनघट की गोरियां याद आ गईं।
पगडंडी पर गीत गातीं छोरियां याद आ गईं।।
शहर में तो कुछ पता ही नहीं चलता त्यौहारों का
मस्ती और प्यार में रंगी वो बचपन की होलियां याद आ गईं।
जहाँ रंग से कम अपनेपन से ज्यादा रंगते थे चेहरे।
गले मिलने से हो जाते थे आपसी रिश्ते और गहरे।
भंग मिठाई खाकर नाचती थी हुरियारों की टोली
रंग देते थे जमीं और आसमां भी गाँव के भोले लोग जो ठहरे।।

स्वरचित
जमीला खातून

Hindi Poem by Jamila Khatun : 111676757
Jamila Khatun 3 year ago

जी बहुत बहुत हार्दिक आभार

shekhar kharadi Idriya 3 year ago

अति सुन्दर

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