हम घिरे हुए हैं बेतरह
अनगिनत भय के सायों से,
अपनों के रूठने का,
सपनों के टूटने का,
जिंदगी के छूटने का,
स्वजनों से बिछड़ने का,
जीवन दौड़ में पिछड़ने का,
खुशियों के बिखरने का,
उम्मीदों के सिमटने का,
ख्वाहिशों के मिटने का,
ठोकरों से गिरने का,
बस यूं ही गुजरती है,
ठहरती है, फिर चलती है,
ये जिंदगी है यारों,
ऐसे ही निकलती है।।
रमा शर्मा 'मानवी'
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