#ग़ज़ल -हँसते हँसते
हँसते हँसते सफ़र पर निकल तो गया।
मैं सम्भलते सम्भलते सम्भल तो गया।।
मन्जिलें कुछ नई कुछ हदें सरहदे।
मौसम ए ज़िन्दगी अब बदल तो गया।।
मोम सा वह बदन और पत्थर सा दिल।
अब पिघलते पिघलते पिघल तो गया।।
चाँद घूँघट में शरमा के बैठा रहा।
फिर मचलते मचलते मचल तो गया।।
-पन्ना