मर गए
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पलकें उठी कि मर गए
नज़रें मिली कि मर गए

कारवाँ सब बिछड़ गया
मंज़िल खोई कि मर गए

मुंतज़िर थे उन आँखों के
आहट सुनी कि मर गए

लाखों में हैं एक वो हसीं
नज़र अटकी कि मर गए

दिल उनको दे कर, मेरी
जान पे बनी कि मर गए

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-सन्तोष दौनेरिया




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Hindi Shayri by Santosh Doneria : 111603068
navita 3 year ago

Bhut khoob 👌👌

Santosh Doneria 3 year ago

तह-ए-दिल से शुक्रिया 🙏

Santosh Doneria 3 year ago

तह-ए-दिल से शुक्रिया 🙏

shekhar kharadi Idriya 3 year ago

अति उत्तम प्रस्तुति

Santosh Doneria 3 year ago

तह-ए-दिल से आपका शुक्रिया 🙏

Santosh Doneria 3 year ago

तह-ए-दिल से आपका शुक्रिया 🙏

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