उनकी कल्पना
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उनकी कल्पना तड़पाती रहती है
शब भर।
तस्वीर आंखों में आती रहती है
शब भर।
कभी डुबाती तो कभी
उभारती रहती है,
याद उनकी लहर बन के
भिगोती रहती है शब भर।
हर ख़्वाब महकता है मेरा
उनकी कल्पना में,
खिले खिले गुलाब सी
महकाती रहती है शब भर।
तस्वीर आंखों में आती रहती है
शब भर।
उनकी कल्पना तड़पाती रहती है
शब भर।
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-सन्तोष दौनेरिया
(शब भर - रात भर)
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