जितनी कसमें थीं सब थीं शर्मिंदा,
जितने वादे थे सर झुकाए थे.
सब किताबें पढ़ी पढ़ाई थीं,
सारे किस्से सुने सुनाये थे.
सिर्फ दो घूँट प्यास की ख़ातिर,
उम्र भर धूप में नहाये थे.
वरना औकात क्या थी सायों की,
धूप ने हौंसले बड़ाये थे.
आज काँटों भरा मुक़द्दर है,
हमने गुल भी बहुत खिलाये थे....!
#RahatIndori
#SundayEvening
#BhaveshRathod