My Meaningful Poem..!!!
जी हाँ अजीब-सी बुलंद शख़्सियत हैं
फ़ानी-इन्सानी पुतलों-सा बशर यारों
माना बदलाव ही प्रकृति का नियम है
मगर बदलाव ही कितने भोग लेते रहे
सदियों से ही सिलसिले चलते आ रहे
दाग़ दामनों के हर दौर में बंदे धोते रहे
धूल तो चिपकी रही अपने ही चेहरों पर
पर आईने ही सिर्फ़ बंदे साफ़ करते रहें
सिर्फ़ दिखावे की बलि पर संस्कृतियाँ
हर दौर में यूँ जालसाज़ी पर चडती रही
अस्मिता ख़ानदानों की भी पारंपरिक
रूढ़िवादी-रिवाजों में यूँ कुचलतीं रही
दूरदर्शी द्रष्टि-हीनता के अभाव पर ही
जूठी वास्तविकताएँ आकार लेती रही
परस्पर सौहार्द प्रेम-ग्लानि आत्मीयता
था ग़ेहना कभी, ख़्वाब-सी बनती रही
छल-कपटपूर्ण स्वार्थ-पूर्ण भावनाओं
का चलन सरेआम प्रमाण बनता रहा
अब तो सिर्फ़ प्रभु ही मसीहा आनेवाली
पुस्त-व-नस्लों का,सच्चाई मिटती रहीं
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