#भद्दा

हां.. मैं एक स्त्री हूँ
भद्दे समाजों में ,
बेढंग विचारों में
जड़ प्रथाओं में ,
रिति-रिवाजों में..

मैं भी घुटती हूँ
पिटती हूँ, पिसती हूँ ,
बिखरती हूँ, टूटती हूँ
भीतर ही भीतर रो कर
क्षण क्षण मरती हूँ...!!

देह की आड़ में
वंश की चाह में ,
दहेज की मांग में
पिट पिटकर,
सतायी जाती हूँ
जलायी जाती हूँ
निष्ठुर रिश्तों में ,
निःशब्द व्यथा में
स्वाहा करके....!!

हाँ..मैं एक स्त्री हूँ
खुलकर उड़ना चाहती हूं
सपनों को जीना चाहतीं हूं
करूप रिवाजों से मुक्त होकर ,
दोगले व्यवहारों से रिक्त होकर
उन्मुक्त हवा में दौड़ना चाहती हूँ
खुली राहों में चलना चाहती हूँ
उमंगीं लहरों में तैरना चाहती हूँ
हा..मैं एक स्त्री हूँ, हा..मैं एक स्त्री हूँ
बस मेरे बंजर हृदय में खुशियाँ लौटा दो..!!!

(१६/९/२०२०)

- © शेखर खराड़ी

Hindi Poem by shekhar kharadi Idriya : 111570694
नाईशा 4 year ago

ખૂબ સુંદર...👏👏

shekhar kharadi Idriya 4 year ago

दिल से बहुत बहुत धन्यवाद हंसराज जी 👏

shekhar kharadi Idriya 4 year ago

दिल से धन्यवाद 👏

shekhar kharadi Idriya 4 year ago

दिल से धन्यवाद दमयंती जी 👏

shekhar kharadi Idriya 4 year ago

दिल से धन्यवाद मित्र श्रेष्ठ जी 👏

shekhar kharadi Idriya 4 year ago

दिल से धन्यवाद पारुल जी 👏

shekhar kharadi Idriya 4 year ago

दिल से धन्यवाद हिना जी 👏

shekhar kharadi Idriya 4 year ago

दिल से धन्यवाद अस्मिता जी 👏

Hansraj 4 year ago

आप ने सही कहा ओर आप गजब के हिन्दी लिखा करते हो लाजवाब हैं औरतों पर लिखा समाज को तमाचा मारा है आपका आभार व्यक्त करता हूँ ।

Dr. Damyanti H. Bhatt 4 year ago

વાહ સુન્દર

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