मन की नदी में
तर्पण किया है पापा भावनाओं से,
भीगा सा मन लिए ...
इस पितृपक्ष
फिर बैठी हूँ आकर, भोर से ही
छत पर, जहाँ कौए के
कांव - कांव करते शब्द
और सूरज की बढ़ती लालिमा
के मध्य, निर्मल स्नेह भर अंजुरी में
कर रही हूँ अर्पित,
नेह की कुछ बूंदें गंगाजल के संग
आशीष की अभिलाषा लिए!!!
…..
© सीमा 'सदा'
#पितृपक्ष_पापा

Hindi Poem by Seema singhal sada : 111562502
shekhar kharadi Idriya 4 year ago

अत्यंत हृदय स्पर्श प्रस्तुति..

Rama Sharma Manavi 4 year ago

भावपूर्ण रचना

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