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#_Alfazon_Ka_Shor__SJT मैं लिखता हूं तो यूं ही लिखता रहूंगा । मैं उदास हूं तो उदास दिखता रहूंगा ।। ज़माने की बदल ने बहुत बदलना चाहा । मैं अनमोल चीज़ हूं यूं ही बिकता रहूंगा ।। अ़फसाने आए थे ज़िन्दगी में कहर बनके । सूखे पेड़ का पत्ता हूं टूट के गिरता रहूंगा ।। मुसाफ़िर हूं तेरे इस अजनबी शहर का मैं । तेरी गलियों के आस पास फिरता रहूंगा ।। मुफलिसी का दायरा इतना बड़ा भी नहीं । रोज़ इंसानों की बाज़ार में बिकता रहूंगा ।। लगाए हैं इल्ज़मात जो मेरे कुछ अपनों नें । गुनहगारों की तरह ना ही मैं पिसता रहूंगा ।। कुछ ज़ख्म अदृश्य हैं कैसे मरहम लगाऊं । पीड़ा लफ़्ज़ों में ढालकर लिखता रहूंगा । तुम बेशक पत्थरों की विशाल इमारत हो । कांच का टुकड़ा हूं छूकर बिखरता रहूंगा ।। जब देखोगी ख़ामोश आईने में खुद को । आंखे नम हो जाएंगी मैं निखरता रहूंगा ।। निकला हूं मंज़िल के तलाश की प्यास लेकर । कब बुझेगी प्यास या फिर ऐसे भटकता रहूंगा ।। ग़मगीन अमावस की काली रातें सोने नहीं देती। सुर्ख आंखों का झरना हूं ऐसे ही झरता रहूंगा ।। #PoetryOfSJT #shayari #hindi #love #life #sad #alone #kavita #gazal #muktak #hindiwriters
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