कर सिंगार प्रकृति पद्मिनी पलक उघारी,
पात पात पर लगी नाचने हो मतवारी।
आ पहुँचे ऋतुराज आज फ़िर रंग जमाने,
होंठों पर शतदल सी आभा लगी मुस्काने।
पा कोमल संदेश आम ने मौन धराया,
चिपके थे जो पात पियरे लगा पराया।
बसंत लगा मेहमान आज बगिया है महकी,
बौराये सब आम कुंज में कोयल चहकी।
स्वर्ण कलश ले हाथ खड़ी सरसों की क्यारी,
मन की फिर जगी उम्मीद देख ये आभा प्यारी।
✍🏻🙏🏻😊


#वसंत

Hindi Poem by Anjali Tiwari : 111388702

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