न मैं भेड़ बकरी थी,
जो# संरेखित चलती।
तुम्हारे इशारों पर ,
जो बैठती उठती।
न मैं गाय थी ,
कि खूँटे से बँधती,
रंभाती रहती ।
कि बचन की बाँधी,
पहुँचती शेर के सामने,
अपने बछड़े के लिये।
न मैं मैना थी कि ,
कोई दाना दिखाकर,
कर लेता कैद ,
सुनहरे पिंजरे मेंं !
मैं तो हूँ पागल हवा,
जिसे कभी न कोई,
बाँध पाया हो ,
कर सका हो#संरेखित,
प्रयास भी कर लो ,
न कर पाओगे कब्जे में ।
ये आई मैं वो गई,
जहाँ मेरा दिल किया,
बगूले बन मैं गई।
कोशिश न करो जानम,
जबरन बाँधने की ।
मैं जैसी हूँ , रहूँगी,
विश्वास हो तो अपनाओ,
रहूँगी फिर तुम्हारी ही।
शोभा शर्मा
#संरेखित