बुढ़ापा बोज नहीं
जोड़ हे इस जीवन का
मोड़ हे एक नए सफर का ,
ये तो निचोड़ हे
जीवन के इन अनुभवों का ,
परिवर्तन का सहज स्वीकार हे
एक नए जीवन का आविष्कार हे ,
जीर्ण तो तेरा शरीर हुआ हे
अनुभवों से तु युवा हुआ हे ,
बहोत परीक्षा ली इस दुनिया ने तेरी
ये बुढ़ापा उसीका जवाब हे
क्यों इतना डर रहा हे
जब तेरा रब तुजे स्वीकार रहा हे
कविता के रचनाकार: वेद चन्द्रकांतभाई पटेल २४,गोकुल सोसाइटी , कड़ी, गुजरात Mob.-9723989893