सन्मुख सावरा खड़ा हो, बंसी में स्वर भरा हो.
तिरछा चरण धरा हो.
मेरे मुख मै तुलसी दल हो,
पीताम्बर कसी हो, होठों पे कुछ हसी हो.
यही छवि मन मै बसी हो, जब प्राण तन से निकले.
" मेरा सावरा निकट " हो.

Hindi Poem by Rathod Ranjan : 111329726
Narendra Parmar 4 year ago

वाह जी 🙏👌

Trisha R S 4 year ago

पलकों के बांध को तोड़ चला ये बन के घटा घनघोर चला प्रियतम के आने की खबर में वह आँखों का प्रांगण छोड़ चला मीरा की तरह जोगन सा नाचा फिर प्रेम चुनरी ये ओड़ चला देने को जो था नहीं कुछ तो वो बन कर तोफा मोती का अनमोल चला लब्ज़ बता ना पाये कितना इंतज़ार था तेरा वो एक आँसू बोल पड़ा... Trisha...

Narendra Parmar 4 year ago

वाह 👍👌

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