कारोबार प्यार का
चाहतो का सिलसिला सदियों से चलता तो है,
इश्क़ में मरने का जुनून पर हर कीसी मे नहीं है,
रुठना और मनाना एक रिवाज बन गया है,
असल मे करीब आने का बहाना बन गया है,
तू छोड़ के जाएगा मर जाएंगे, पुराना हुआ है,
तेरे बाद किसी और पे मरेंगे, ये हाल हुआ है,
पेड़ के पीछे प्यार करने वाले मीलते होते है,
अब किसी लड़की का बिगडा शरीर मिलता है,
शरीर में चाहे शक्कर भले ही अब कम हुई है,
बातों में मीठा ज्यादा और फंसाने का जहर है,
चाहते पहले खुदा की परछाई समझते लेते है,
अब जिस्म की आग बुझाने का कारोबार ही है,
मील जाता है सच्चा कोई इस जमाने अगर है,
ना टिकेगा, तूट जाएगा, जमाना पत्थर बन गया है।
बिंदी पंचाल "बिंदिया"