बादल जब बरसते तो ख़ुशी से नाचते..
और दूर जब इंद्रधनुष दिखता,
तो लगता था कि पकड़ लेंगे इसको..
बारिश में चलती हमारी कागज की नाव,
जब अक़्सर डूब जाती थी..
हवाओं के साथ भागती हमारी फ़िरकी,
जब अक़्सर रुक जाती थी..
और हमेशा जमीन पर रेंगती हमारी पतंगे,
अक़्सर हमें कितना रुलाती थी..
हंस पड़ती हूँ आज भी सोचकर..
बचपन कितना मासूम था.
सोचकर ही ये बातें हमें अब कितना हंसाती है..
पर सचमुच कितनी सच्ची लगती है..
कितनी अच्छी लगती है..