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रात का राजा भाग 2लेखक: राज फुलवरेअध्याय तीन — अमृतधारा का रहस्यरात घनी हो चली थी...
गांव में सुबह की पहली किरण आई तो लोगों ने रघु के घर के बाहर अजीब माहौल देखा. दरव...
रुखसाना ने अन्वेषा की तरफ इशारा किया और बोली -“अगर तुम्हें उसे बचाना है, तो एक स...
अध्याय 19 :Vedānta 2.0 अध्याय 19- वेदांत का अमूल्य सूत्र The invaluab...
# आस्था की छाया## *एक दार्शनिक नाटक - अंधविश्वास और सत्य की यात्रा*---## **पात...
जीतेशकान्त पाण्डेय- कक्षा पाँच उत्तीर्ण कर आपने मिडिल स्कूल में प्रवेश लिया। मिड...
उत्तर प्रदेश के Pratapgarh जिले में बसे छोटे और शांत गाँव Kusumi की एक अलग ही पह...
नंद...
बचपन की आख़िरी चिट्ठी(एक हिस्सा, पर पूरी कहानी)हमारा पहला दिन था प्लेस्कूल का।मै...
रोमी के बोले शब्द विजय के दिमाग में घूम रहे थे आज वह अकेले में बैठ कर बहुत रोया...
रात्रि के अंधकार में सुनसानी सड़क पर कंधे लटकाए हाथ झुलाए कर्ण आहिस्ता-आहिस्ता चल रहा है। 'राजू नाई' के दूकान को पार कर वो अपने कदमों को विराम देता है तथा सिर ऊपर की ओर उठा...
‘जीवन संघर्ष और उत्कट जिजीविषा से जुडी हैं संग्रह की कहानियां’ मानव जीवन और उसके कार्य व्यवहार सदा ही अनंत कौतुक - कौतूहलों व जिज्ञासाओं का केंद्र रहे हैं । साहित्य किसी भी कालख...
आषाढ़ का महिना था, हल्की ठंडी हवा गुनगुना रही थी और धीमे धीमे भोर की खुशबू फैल रही थी और प्रकृति ये संदेश दे रही थी की कुछ ही क्षणों में सूर्योदय होने को है ... राकेश वही रोज की...
" नहीं नहीं। मेरे पापा को छोड़ दो।" छह साल की आभा ने एक परछाई को देखते हुए कहा। " प्लीज़ उन्हें कुछ मत करना.....।" यह कहते कहते सामने का नजारा देख वो सुन्न पड़ गईं।...
इस कहानी की शुरुवात होती है एक घनी अंधेरी रात से, जहाँ एक आदमी बड़ी तेजी से जंगल के अंदर वाले रास्ते पर चला जा रहा था। अचानक से उसे कुछ आहट सुनाई दी। उसने इधर उधर देखा पर उसे कुछ द...
मुझे बाइक चलाना बहुत पसंद है। बहुत ज़्यादा। जुनून की हद तक। जब मैं एट स्टैंडर्ड में पहुँची तो स्कूल जाने के लिए फ़ादर ने लेडी बर्ड साइकिल दी। उन्हें यक़ीन था कि नई साइकिल पाकर मैं ख़ु...
सदफ़िया मंज़िल का दरवाज़ा खुला हुआ है। वह भी सदफ़िया की तरह बहुत बूढ़ा हो चुका है। जगह-जगह से चिटक गया है। यह चिटकन और बढ़ कर दरवाज़े को ज़मीन न सुँघा दे, इस लिए जगह-जगह टीन की पट्टियों को...
कोविड-१९ फ़र्स्ट लॉक-डाउन काल की सत्ताईसवीं सुबह है। रिचेरिया अपॉर्टमेंट की पाँचवीं मंज़िल पर अपने फ़्लैट की बालकनी में बैठी, दूर क्षितिज में एक केसरिया घेरे को बड़ा होता देख रही है।...
राघव और तारा, बचपन के पक्के दोस्त जिनकी दोस्ती का आधार बनी गेम पार्लर में खेली जाने वाली वीडियो गेम्स जिसके वो दोनों ही दीवाने थे। बचपन बीता और खेल की जगह ली कैरियर के प्रति उनकी च...
सकीना यह समझते ही पसीना-पसीना हो गई कि वह काफ़िरों के वृद्धाश्रम जैसी किसी जगह पर है। ओम जय जगदीश हरे . . . आरती की आवाज़ उसके कानों में पड़ रही थी। उसने अपने दोनों हाथ उठाए कानों को...
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