इस कहानी में नगर में सुबह का समय है, जहां सूरज की रोशनी फैल चुकी है और गलियां खाली हैं। पापनाशी, एक प्रमुख पात्र, अपने भड़कीले वस्त्रों को उतारकर फेंक देता है और थायस को उन लोगों की बुराईयों के बारे में बताता है, जो स्त्रियों को केवल अपनी वासनाओं का साधन समझते हैं। वह थायस को याद दिलाता है कि कैसे लोग धर्म और नैतिकता का अपमान करते हैं और उसे अपने जीवन के बारे में सोचने के लिए प्रेरित करता है। थायस, जो पहले से ही ग्लानित और लज्जित महसूस कर रही है, समझती है कि वह भी इसी अंधकार में फंसी हुई है। वह पापनाशी से कहती है कि वह बेहद कमजोर महसूस कर रही है और शांति की तलाश में है। पापनाशी उसे धैर्य और साहस रखने की सलाह देता है, यह कहते हुए कि उसकी सुख और शांति का प्रकाश एक दिन अवश्य निकलेगा। इस तरह, कहानी में नैतिकता, दुराचार और आत्म-प्रज्ञा के विषयों पर गहन चर्चा होती है, जिसमें थायस अपने जीवन के विकल्पों पर विचार करती है।
अलंकार अध्याय 4
by Munshi Premchand
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Hindi Fiction Stories
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Description
नगर में सूर्य का परकाश फैल चुका था। गलियां अभी खाली पड़ी हुई थीं। गली के दोनों तरफ सिकन्दर की कबर तक भवनों के ऊंचेऊंचे सतून दिखाई देते थे। गली के संगीन फर्श पर जहांतहां टूटे हुए हार और बुझी मशालों के टुकड़े पड़े हुए थे। समुद्र की तरफ से हवा के ताजे झोंके आ रहे थे। पापनाशी ने घृणा से अपने भड़कीले वस्त्र उतार फेंके और उसके टुकड़ेटुकड़े करके पैरों तले कुचल दिया।
उन दिनों नील नदी के तट पर बहुतसे तपस्वी रहा करते थे। दोनों ही किनारों पर कितनी ही झोंपड़ियां थोड़ीथोड़ी दूर पर बनी हुई थीं। तपस्वी लोग इन्हीं में एकान...
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