खट्टे मीठे व्यंग

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नाम के पीछे आई ए एस के गरिमामय दुमछल्ले को जोड़ने वाले मेरे छोटे भाई की कार मेरे घर के सामने उन्होंने कई बार खड़ी देखी तो अपने कौतूहल को वे रोक नहीं पाए. भाई को अपने रुतबे से जलने वालों की ऐसी हाय लगी थी कि कार की छत से नीली बत्ती को बेमन से हटाना पड़ गया था. पर उस टीस को कार के पीछे लाल अक्षरों में लिखे ‘भारत सरकार‘ ने किसी हद तक कम कर दिया था. उसी को देखकर इन सज्जन ने मुझसे “सांवरे से सखी, रावरे को हैं?’ वाले अंदाज़ में उस सरकारी कार के मालिक से मेरे सम्बन्ध के बारे में पूछ डाला.

Full Novel

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Khatte Mithe Vyang : 1

नाम के पीछे आई ए एस के गरिमामय दुमछल्ले को जोड़ने वाले मेरे छोटे भाई की कार मेरे घर सामने उन्होंने कई बार खड़ी देखी तो अपने कौतूहल को वे रोक नहीं पाए. भाई को अपने रुतबे से जलने वालों की ऐसी हाय लगी थी कि कार की छत से नीली बत्ती को बेमन से हटाना पड़ गया था. पर उस टीस को कार के पीछे लाल अक्षरों में लिखे ‘भारत सरकार‘ ने किसी हद तक कम कर दिया था. उसी को देखकर इन सज्जन ने मुझसे “सांवरे से सखी, रावरे को हैं?’ वाले अंदाज़ में उस सरकारी कार के मालिक से मेरे सम्बन्ध के बारे में पूछ डाला. ...Read More

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Khatte Mithe Vyang : Chapter 2

सुना तो था कि हर कुत्ते के दिन आते हैं फिर भी उस कुत्ते के भाग्य से ईर्ष्या हुई कई दिनों से दिल्ली पुलिस को तलाश थी. भला कितने कुत्तों का ये सौभाग्य होता है कि अखबारों और टी वी चैनलों पर उनकी खबर ही नहीं बाकायदा तस्वीर भी आये. तस्वीरों में तो वह बड़ा मासूम लग रहा था जब कि उस पर आरोप था कि उसने अपने मालिक अर्थात मियाँ के उकसाने से बीबी को काट खाया था. लोगों को कौतूहल था कि क्या कुत्ते के ऊपर भी पुलिस मुकदमा दायर करेगी, उधर पुलिस के सामने कई सवाल उठ खड़े हुए थे. ...Read More

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Khatte Mithe Vyang : Chapter 3

छोटे से फ़्लैट में जाने कितनी पुरानी यादों के साक्षी सामान जमा हैं जिन्हें फेंकने का मन नहीं होता. सी पेंशन के सहारे महंगाई से लगातार चलती लड़ाई है. कारण तो बहुत हैं पर सबका परिणाम एक है. शोपिंग मेरे लिए मजबूरी है, शौक नहीं. अकबर इलाहाबादी के शब्दों में “दुनिया में हूँ दुनिया का तलबगार नहीं हूँ , बाज़ार से निकला हूँ खरीदार नहीं हूँ.” फ़िर भी जब बाज़ार दूकानों से बाहर निकल कर फूटपाथों पर हाबी हो जाए तो उन पर सजाये हुए बिकाऊ माल से टकराने, गिरने के डर से ही सही, आँखें खोल कर चलना पड़ता है. ...Read More

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Khatte Mithe Vyang : Chapter 4

कई वर्षों से अमरीका में रहने वाले एक मित्र दिल्ली आये तो मैं बड़े गर्व के साथ उन्हें दिल्ली मेट्रो रेल दिखाने ले गया. लेकिन स्टेशन पर ज़बरदस्त हंगामे का माहौल दिखा. पता चला कि सार्वजनिक चुम्बन पर परम्परावादी लगाम ढीली करवाने का जज्बा लेकर दिल्ली की तेज़ तर्रार युवा पीढ़ी स्टेशन पर खुले आम चुम्बन समारोह मनाने आई थी. उधर भारतीय संस्कृति की रक्षा को प्रतिबद्ध बहुत से खुदाई खिदमतगार इन प्रदर्शनकारियों को पीटकर और उनके कपडे फाड़कर देश की लज्जा ढंकने के उतने ही ज़बरदस्त जज्बे का प्रदर्शन करने आये हुए थे. ...Read More

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Khatte Mithe Vyang : Chapter 5

बेटे को अमरी एक्सेंट में फर फर अंग्रेज़ी बोलते देखकर संतोष होता है कि इतने महंगे पब्लिक स्कूल में के पैसे वसूल हो गए. बस इसकी एक कीमत भारी पड़ी है. हमें भाषा के साथ साथ अपनी पूरी रहन सहन भी बदलनी पड़ गयी. शुरुआत बाथरूम से हुई थी जहां उसकी पसंद के क्यूबिकल, शावर और डब्ल्यू सी आदि लगवाने में इतने पैसे खर्च हो गए जितने में हमारे फ़्लैट का पूरा कायाकल्प हो जाता. फिर बाथरूम से बाल्टी मग इत्यादि निकाल कर फेंकने पड़े. पिताजी की यादगार पीतल का मुरादाबादी लोटा तो बेटे ने बरसों पहले कबाड़ी को दे दिया था. ...Read More