युगमहाभारत

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जब सृष्टि के आदिकाल में ऋषियों ने वेदों का प्रथम निनाद सुना, तभी यह भी घोषित हुआ कि धर्म ही विश्व की धुरी है। युगों के प्रवाह में जब सत्य दुर्बल हुआ और अधर्म ने अपना विष फैलाना आरम्भ किया, तब आरम्भ हुई वह कथा, जिसे मानव इतिहास महाभारत नाम से जानता है। यह एक ऐसा ग्रंथ है जिसमें देव, दानव, ऋषि, योद्धा, श्राप, वरदान, कूटनीति, मैत्री, विश्वासघात, प्रेम, पराक्रम और अंततः धर्म का अंतिम निर्णय समाहित है। यह वही गाथा है जिसमें भीष्म की अचल प्रतिज्ञा है, गांधारी का शाप है, द्रौपदी की अग्नि-घोषणा है, कर्ण की दानशीलता है,

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युगमहाभारत - 1

जब सृष्टि के आदिकाल में ऋषियों ने वेदों का प्रथम निनाद सुना, तभी यह भी घोषित हुआ कि धर्म विश्व की धुरी है। युगों के प्रवाह में जब सत्य दुर्बल हुआ और अधर्म ने अपना विष फैलाना आरम्भ किया, तब आरम्भ हुई वह कथा, जिसे मानव इतिहास महाभारत नाम से जानता है। यह एक ऐसा ग्रंथ है जिसमें देव, दानव, ऋषि, योद्धा, श्राप, वरदान, कूटनीति, मैत्री, विश्वासघात, प्रेम, पराक्रम और अंततः धर्म का अंतिम निर्णय समाहित है। यह वही गाथा है जिसमें भीष्म की अचल प्रतिज्ञा है, गांधारी का शाप है, द्रौपदी की अग्नि-घोषणा है, कर्ण की दानशीलता है, ...Read More

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युगमहाभारत - 2

अध्याय 2 - आत्म परीक्षारात्रि के अंतिम पहर की निस्तब्धता में हस्तिनापुर जैसे किसी अदृश्य प्रतीक्षा में स्थिर था। की लौ हवा के झोंकों से डोल रही थी, पर महल का विशाल प्रांगण गंभीर और शांत था।आरात्रि के पश्चात जब पूर्व दिशा में हल्की सी आभा फैलने लगी, राजा शांतनु अपने कक्ष से बाहर आ गए। उनकी आँखों में जागी रातों का बोझ था, पर मन में एक अजीब सी ऊर्जा थी, जिसे वे समझ नहीं पा रहे थे।महल के ऊपर के प्रांगण में खड़े होकर उन्होंने दूर दूर तक नजर दौड़ाई। हवा में अभी भी गंगा की स्मृति ...Read More