मंदिर, मूर्ति, धर्म और शास्त्र — एक नई दृष्टि

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मनुष्य ने जब पहली बार किसी पत्थर को ईश्वर कहा, वह अंधविश्वास नहीं था — वह अदृश्य को छूने की कोशिश थी। धरती, आकाश, वर्षा, अग्नि — हर शक्ति उसके लिए रहस्य थी। वह उनसे डरता भी था, और उन्हें पूजता भी था। भय से निकली श्रद्धा, श्रद्धा से निकला धर्म, और धर्म से उत्पन्न हुआ शास्त्र। पर समय के साथ — भय गया नहीं, रूप बदल गया। अब मनुष्य प्रकृति से नहीं डरता, पर अपने भीतर से डरता है। यही डर आज भी उसकी प्रार्थना, पूजा, मूर्ति और शास्त्र के पीछे छिपा है। यह ग्रंथ उसी डर को समझने की कोशिश है — जिसे धर्म ने पूजा बना दिया, जिसे शास्त्र ने नियम बना दिया, और जिसे मानव ने सत्य मान लिया।

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मंदिर, मूर्ति, धर्म और शास्त्र — एक नई दृष्टि - 1

मंदिर, मूर्ति, धर्म और शास्त्र — एक दृष्टि — 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓣 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓷𝓲 प्रस्तावना मनुष्य ने जब पहली बार किसी को ईश्वर कहा,वह अंधविश्वास नहीं था —वहअदृश्य को छूने की कोशिशथी।धरती, आकाश, वर्षा, अग्नि —हर शक्ति उसके लिए रहस्य थी।वह उनसे डरता भी था,और उन्हें पूजता भी था।भय से निकलीश्रद्धा,श्रद्धा से निकलाधर्म,और धर्म से उत्पन्न हुआशास्त्र।पर समय के साथ —भय गया नहीं, रूप बदल गया।अब मनुष्य प्रकृति से नहीं डरता,परअपने भीतर से डरता है।यही डर आज भी उसकी प्रार्थना, पूजा, मूर्ति और शास्त्र के पीछे छिपा है।यह ग्रंथ उसी डर को समझने की कोशिश है —जिसे धर्म ने पूजा बना ...Read More

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मंदिर, मूर्ति, धर्म और शास्त्र — एक नई दृष्टि - 2

अध्याय 3 — मंदिर और मूर्ति का रहस्य — 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓣 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓷𝓲मूर्ति कभी ईश्वर नहीं थी।वह केवलमानव-मन का —जिसमें उसने अपनी ही छवि ईश्वर के रूप में देखी।मनुष्य ने जब पहली बार किसी स्त्री को देखा,तो भीतर एक कंपन, एक काम घटित हुआ।वह शक्ति, आकर्षण और विस्मय — सब एक साथ।मनुष्य उस अनुभव को समझ नहीं पाया,पर उसने जाना कि यह साधारण नहीं है।वह जो भीतर उठा, वही “ऊर्जा” थी —जिसे बाद में उसने “देवी” कहा,और उसी के रूप पर पहली मूर्ति गढ़ी।इस तरह मूर्ति का जन्म किसी धर्मादेश से नहीं,बल्किऊर्जा के विस्मय सेहुआ।① पहला कारण — ...Read More