मैं आदिब्रह्मा हूँ।मैं ही समस्त संसार का उत्पातिक हूँ।मैं ही चारों ओर और मैं ही आचार हूँ।मैं ही आत्मा और मैं ही परमात्मा हूँ।मैं ही मनु, और मैं ही असुर, और दानव हूँ, तथा मैं ही अंधकार और प्रकाश हूँ।मुझसे ही यह संसार है, मुझसे ही प्रेम और तृष्णा हैं।मैंने स्वर्ग तथा नरक की रचना की है।मैंने ग्रह और इस संसार के अनगिनत रूप बनाए हैं।तथा इस संसार में जो कुछ भी है, वह मैं हूँ।जो नहीं है, वह भी मैं हूँ।और जो होगा, वह भी मैं हूँ।संसार की उत्पत्ति मुझसे हुई।
श्रापयात्रा - 1
मैं आदिब्रह्मा हूँ।मैं ही समस्त संसार का उत्पातिक हूँ।मैं ही चारों ओर और मैं ही आचार हूँ।मैं ही आत्मा मैं ही परमात्मा हूँ।मैं ही मनु, और मैं ही असुर, और दानव हूँ, तथा मैं ही अंधकार और प्रकाश हूँ।मुझसे ही यह संसार है, मुझसे ही प्रेम और तृष्णा हैं।मैंने स्वर्ग तथा नरक की रचना की है।मैंने ग्रह और इस संसार के अनगिनत रूप बनाए हैं।तथा इस संसार में जो कुछ भी है, वह मैं हूँ।जो नहीं है, वह भी मैं हूँ।और जो होगा, वह भी मैं हूँ।संसार की उत्पत्ति मुझसे हुई। मुझसे ही देव, दानव, असुर, सूर, मनुष्य, अच्छाई ...Read More
श्रापयात्रा - 2
आकाश बिजली से चमक रहा था।काले बादल गरज रहे थे, आँधी–तूफ़ान का प्रकोप था।एक पुराने खंडहर के बीच एक आग भड़क रही थी,तो दूसरी तरफ़ पानी बह रहा था — जैसे प्रकृति के दो तत्व — अग्नि और नीर — एक दूसरे से टकरा रहे हों।लाल वस्त्र पहने एक युवा तलवार उठाए खड़ा था।उसका चेहरा कसक से भरा था, आँखों में दर्द था।उसने अपनी तलवार सीधा एक और युवा के पेट में घुसा दी —वह युवा नीला वस्त्र पहने था, उसका नाम था — नीर।अग्नि (काँपते हुए स्वर में):"मुझे माफ़ कर दो, नीर... मेरे पास सिर्फ़ एक ही रास्ता ...Read More
श्रापयात्रा - 3
योग कक्षा का दृश्योग शिक्षा के समय, सभी शिष्य ध्यान में बैठे थे।तभी एक लड़का — नीर — चुपके गुरु निरंजन की नकल करता है,और कुछ शिष्य हँसी में फूट पड़ते हैं।अग्नि, एक अन्य शिष्य, शांत और नियमित लड़का, उसे घूर कर देखता है...अग्नि (तेज़ आँखों से):“योग समय में ऐसा बचपना उचित नहीं।”नीर (मुस्कुराते हुए):“अरे तुम तो चुप ही रहो अग्नि! कभी मस्ती भी किया करो।तुम तो बस नियम नियम करते रहते हो, एक दिन गुरुदेव जैसे बन जाओगे!”अग्नि चुप रहता है... बस उसकी आँखों में दिशा हैतभी गुरु निरंजन कठोर स्वर में बोलते हैं:“योग में शांति होनी चाहिए, ...Read More