बस में बहुत भीड थी, लोगों को खड़े खड़े सफर कर रहे थे। बैठने वाले भी दांत को कसके जा रहे थे। लेकिन उन्हीं बीच एक युवक जो दिखने में तो एक सीधा साधा २० २१ साल का जवान लड़का था, सरल सफेद कपड़े और उसकी पास के सीट में उसका बैग रखा हुआ था। वो बस के खिड़की के उस पार देख रहा था मानो वो किसकी तलाश में हो । उसी भीड़ में एक आदमी दूसरे एक आदमी से पूछता है " अरे भाई साहब इतनी भीड़ के बावजूद भी इस सीट पर किसका बैग है।" दूसरे व्यक्ति ने जवाब दिया "अरे भाई ये इस लड़के की बैग है।" उस पहले व्यक्ति ने लड़के से कहा कि अरे ओ लड़के क्या ये बस तेरी बाप की है जो तूने अपना बैग यहां रखा है। लड़का मांगते हुए समझाया कि इसमें बहुत जरूरी समान है इसलिए उसने उस सीट पे रखा है। उसने यह भी कहा की उसका स्टॉप पास में ही है थोड़ा इंतेज़ार कर लीजिए। वो व्यक्ति नहीं माना और कहा कि अगर तेरा स्टॉप पास में है तो अब तक उठ क्यों नहीं जाता ।
उलझे रिश्ते - भाग 1
बस में बहुत भीड थी, लोगों को खड़े खड़े सफर कर रहे थे। बैठने वाले भी दांत को कसके रहे थे। लेकिन उन्हीं बीच एक युवक जो दिखने में तो एक सीधा साधा २० २१ साल काजवान लड़का था, सरल सफेद कपड़े और उसकी पास के सीट में उसका बैग रखा हुआ था। वो बस के खिड़की के उस पार देख रहा था मानो वो किसकी तलाश में हो । उसी भीड़ में एक आदमी दूसरे एक आदमी से पूछता है " अरे भाई साहब इतनी भीड़ के बावजूद भी इस सीट पर किसका बैग है।" दूसरे व्यक्ति ने ...Read More
उलझे रिश्ते - भाग 2
शाम होने को थी, ऋषि अभी तक घर नहीं आया। रूपा बेहोशी हालत में थी।फुल्की ने रूपा के सर मरहम लगाकर पट्टी बांध दिया था। रूपा को होश आया। जैसे ही रूपा होश में गई वो जोर जोर से चिल्लाने लगी, "ऋषि बेटा.....ऋषि बेटा...""तुम कहा जा रहे हो... बे..." आगे कुछ बोलती वो जान जाती है कि वो बेहोश होगई थी और अभी अभी उसे होश आया है।रूपा बाहर होती है, जैसे अपनी माँ की पुकार सुनती है वो दौड़ी चली आती है। "माँ.. आपको होश आगया माँ... में तो चिंता करने लगी थी। यह कहकर फुल्की रोने लगती ...Read More
उलझे रिश्ते - भाग 3
रात के ग्यारह बजे थे। आकाश चमकीले तारों से भरा हुआ था। चाँद इस तरह चमक रहा था मानो की रात में दूसरा सूरज ही निकल आया हो। चारों ओर ऐसा सन्नाटे की नुकीली सुई कानों में चुभ रही हो।पार्क में एक खंभे के नीचे, जहाँ बल्ब जल रहा था, सीमेंट की बनी एक छोटी-सी बेंच रखी थी। उसी पर काले ओवरकोट में सिर झुकाए एक युवक बैठा था। उसके पास ही उसका बैग रखा था। वह कोई और नहीं बल्कि ऋषि था—जो दो दिन पहले ही अपने घर से भाग निकला था।“लगता है आज भी मुझे भूखे पेट ...Read More