जब पहाड़ रो पड़े

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जहां से पलायन शुरू हुआ) देवभूमि उत्तराखंड — जहां हवा में भी गूंजते थे मंदिरों के घंटे, जहां नदियों के किनारे किस्से बहते थे, और जहां हर गांव की सुबह घण्टियों, पक्षियों और बच्चों की चहक से होती थी। पर आज, उसी उत्तराखंड में हजारों गांव ऐसे हैं जहां अब सिर्फ सन्नाटा बचा है। पलायन की शुरुआत किसी एक घटना से नहीं हुई। ये एक धीमी मौत थी — अवसरों की कमी, विकास से दूरी, और युवाओं के सपनों की तलाश ने इसे जन्म दिया। आंकड़ों की सच्चाई: उत्तराखंड सरकार द्वारा गठित पलायन आयोग की रिपोर्ट (2018) के अनुसार: राज्य में 16,793 गांव हैं।इनमें से 734 गांव पूरी तरह वीरान हो चुके हैं।लगभग 3 लाख से अधिक लोग पिछले दो दशकों में अपने गांव छोड़ चुके हैं।अकेले पौड़ी, टिहरी और अल्मोड़ा जिलों में सबसे ज़्यादा पलायन हुआ है।

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जब पहाड़ रो पड़े - 1

लेखक - धीरेंद्र सिंह बिष्टअध्याय 1: पहाड़ की पहली दरार(जहां से पलायन शुरू हुआ)देवभूमि उत्तराखंड — जहां हवा में गूंजते थे मंदिरों के घंटे, जहां नदियों के किनारे किस्से बहते थे, और जहां हर गांव की सुबह घण्टियों, पक्षियों और बच्चों की चहक से होती थी। पर आज, उसी उत्तराखंड में हजारों गांव ऐसे हैं जहां अब सिर्फ सन्नाटा बचा है।पलायन की शुरुआत किसी एक घटना से नहीं हुई। ये एक धीमी मौत थी — अवसरों की कमी, विकास से दूरी, और युवाओं के सपनों की तलाश ने इसे जन्म दिया।आंकड़ों की सच्चाई:उत्तराखंड सरकार द्वारा गठित पलायन आयोग की ...Read More

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जब पहाड़ रो पड़े - 2

अध्याय 2: अतीत की मुस्कान(जब गांव जिंदा थे)पहाड़ों की असली ख़ूबसूरती वहां की वादियों में नहीं — वहां के की मुस्कान में बसती थी। वो मुस्कान जो अब बीते हुए कल में कैद हो चुकी है।एक ज़माना था जब पहाड़ों के गांव जीवन से भरे होते थे। सुबह की पहली किरण खेतों पर पड़ती थी और घरों से धुएं के साथ उठती थी रोटियों की महक। बच्चों की चहचहाहट, और चौपाल पर बुज़ुर्गों की कहानियाँ — जैसे हर कोई अपने हिस्से की ज़िन्दगी वहां पूरी जी रहा था।गांव की सुबह — एक त्योहार जैसा दिनप्रत्येक गांव में सुबह किसी ...Read More