हर सुबह की किरण में, अब हमें एक डर सा लगता है, नन्हीं आँखों में सवालों का अंधेरा सा झलकता है। हर हंसी में एक क़ीमत है, हर ग़म में एक ग़मगीन पल, लेकिन कभी किसी ने सोचा है, ये नन्हीं जानें क्यों रोती हैं पल-पल? हवाओं में, चाँद की रौशनी में, अब छुपा है दर्द, जिन्हें हम समझते थे मासूम, उनका बचपन हो गया मर्द। क्या हो गया है हमें, जो हम अपनी ही जड़ों से कट गए, नन्हें चेहरों को देख कर अब हम बस चुप हो गए।
मन की गूंज - भाग 1
हर सुबह की किरण में, अब हमें एक डर सा लगता है,नन्हीं आँखों में सवालों का अंधेरा सा झलकता हंसी में एक क़ीमत है, हर ग़म में एक ग़मगीन पल,लेकिन कभी किसी ने सोचा है, ये नन्हीं जानें क्यों रोती हैं पल-पल? हवाओं में, चाँद की रौशनी में, अब छुपा है दर्द,जिन्हें हम समझते थे मासूम, उनका बचपन हो गया मर्द।क्या हो गया है हमें, जो हम अपनी ही जड़ों से कट गए,नन्हें चेहरों को देख कर अब हम बस चुप हो गए। कभी बचपन में जो बातें हम करते थे बड़े प्यार से,वही बातें अब हमारे दिल को ...Read More
मन की गूंज - भाग 2
मन की गूंज, न सुनाई देती है कभी,पर यह भीतर से आती है, कभी चुपके से, कभी तीव्र।हर विचार, भावना, उसका एक स्वर होता है,जो कभी शांत, कभी हलचल में डूबा होता है। हम सबका मन, एक महल जैसा है,जहाँ पर विचारों का मेला होता है।हर विचार, एक आवाज़ है, जो गूंजती है भीतर,कभी सुख की, कभी दुख की, कभी शांति की, कभी बौछार की। मन की गूंज को समझ पाना सरल नहीं,यह अपनी राह खुद बनाता है, कभी चुप, कभी गूंजता है अनमिन।यह न तो किसी से छुपती है, न दिखती है बाहर,पर अंदर की दुनिया में, यह ...Read More