आखेट महल

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एकआखेट महल के परकोटे के सामने आज सुबह से ही चहल-पहल थी। बड़ी मोटर अभी-अभी आकर लौट चुकी थी। ट्रकों में भरकर ढेर सारे कामगार लाये गये थे। परकोटे के किनारे-किनारे महल के एक ओर के हिस्से की खाई, जो अब सूखकर पथरीली बंजर जमीन के रूप में पड़ी थी, चारों ओर से आदमियों से घिरी हुई थी। मर्द, औरतें यहाँ तक कि बच्चे भी थे, सब इधर से उधर आवाजाही में लगे थे। खाई के बीचों-बीच के थोड़े से हिस्से में अब भी जरा-सा पानी था जो काई, गन्दगी और कीचड़ का मिला-जुला गड्ढा-सा बन गया था।

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आखेट महल - 1

एकआखेट महल के परकोटे के सामने आज सुबह से ही चहल-पहल थी। बड़ी मोटर अभी-अभी आकर लौट चुकी थी। में भरकर ढेर सारे कामगार लाये गये थे। परकोटे के किनारे-किनारे महल के एक ओर के हिस्से की खाई, जो अब सूखकर पथरीली बंजर जमीन के रूप में पड़ी थी, चारों ओर से आदमियों से घिरी हुई थी। मर्द, औरतें यहाँ तक कि बच्चे भी थे, सब इधर से उधर आवाजाही में लगे थे। खाई के बीचों-बीच के थोड़े से हिस्से में अब भी जरा-सा पानी था जो काई, गन्दगी और कीचड़ का मिला-जुला गड्ढा-सा बन गया था। इसकी सफाई ...Read More

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आखेट महल - 2

दोनयी कोठी पर आज सुबह से ही गहमा-गहमी थी। इस कोठी को आबाद हुए साल भर होने को आया मगर इसका नाम नयी कोठी ही पड़ गया था। यही नाम सबकी जबान पर चढ़ गया था।गौरांबर का मन अब यहाँ के कामकाज में रम गया था। रावसाहब को कोई-न-कोई व्यस्तता आते जाने के कारण कोलकाता जाने का समय नहीं मिला था और उसे छ: महीने तक अपने गाँव जाने का मौका नहीं मिला था। पर अब यहाँ की जिन्दगी ने उसे अपना गाँव भी भुला दिया था और गाँव में उसके साथ पेश आया हादसा भी।गौरांबर की धीरे-धीरे कायापलट ...Read More

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आखेट महल - 4

चारगौरांबर को आज तीसरा दिन था इसी तरह से भटकते हुए। वह रात को सोने के लिए कभी रेलवे पर आ जाता, कभी बस स्टैण्ड के सामने वाले कृष्ण मंदिर में। मंदिर के पिछवाड़े की ओर एक छोटा-सा चौक था, जहाँ दिन में वीरान रहता था, मगर रात होते ही आसपास के भिखारी या बेघरबार लोग एक-एक करके डेरा जमाने लगते। आज भी रात घिरते ही गौरांबर यहीं आ गया था। अजीब-सी हालत हो गयी थी। तीन दिन से बदन पर वही कपड़े पहने हुए था। नहाने, मुँह धोने की सुध भी नहीं थी। जेब के पैंतीस रुपये खाने-चाय ...Read More

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आखेट महल - 3

तीनआखेट महल के चारों ओर के परकोटे के जिस तरफ बड़े तालाब की खुदाई का काम चल रहा था, पूरी-की-पूरी जमीन को काँटोंदार तार की बाढ़ से घेर दिया था। कई मील तक फैला हुआ लम्बा-चौड़ा इलाका था। चारों तरफ खबर फैली हुई थी कि इस तालाब के पूरा बन जाने के बाद इसके किनारे खूबसूरत बगीचा बनाया जायेगा और फिर इस सारे स्थान को बनावटी झील का रूप देकर सजा दिया जायेगा। आखेट महल के एक बड़े भाग में होटल बनाने की चर्चा भी जोरों पर थी।इस सारे काम के लिए बड़े मालिक रावसाहब तो पैसा पानी की ...Read More

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आखेट महल - 5

पाँचपुलिस का आखेट महल रोड के पेट्रोल पम्प पर तैनात सिपाही उस रात गौरांबर को कोठी में घुसने की करते समय रंगे हाथों पकड़ने के बाद उस समय तो सड़क पर पड़ा ही छोड़ गया,परन्तु घायल कलाई को सहलाते हुए दर्द से छटपटाते सिपाही के पुलिस स्टेशन पहुँचते ही गौरांबर को थाने में ला पटका गया। जिस समय नीम बेहोशी की हालत में उसे लॉकअप में बंद किया गया,उसे अपनी कोई सुध-बुध नहीं थी।उधर नरेशभान की मोटरसाइकिल और बीस हजार रुपये की चोरी की एफ.आई.आर. पहले ही दर्ज थी,जिसमें शक होने की बात गौरांबर के विरुद्ध पहले ही बता ...Read More

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आखेट महल - 6

उसने युवक को यह भी बता दिया कि कोठी से भागने के पहले रात को वहाँ क्या हुआ था किस तरह नरेशभान के भय से रातों-रात वह जगह छोड़ दी थी उसने।युवक ने काफी ध्यान से एक-एक बात सुनी और बीच-बीच में कुछ एक बातें वह एक कागज पर नोट भी करता जा रहा था। जैसे कि उस कुली का नाम,जिसे गौरांबर ने अपनी घड़ी पचहत्तर रुपये में बेच दी थी। उन दो-तीन ठिकानों के पते जहाँ लाचारी के उन दिनों में उसने खाना खाया था या वह रात गुजारने के लिए जहाँ-जहाँ रहा था।उठकर कमरे के कोने में ...Read More

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आखेट महल - 7

छ:शंभूसिंह के साथ गौरांबर उस दिन उसके गाँव में क्या आया,उसका तो मानो दूसरा जन्म ही हो गया। आधी को चोरों की तरह छिपकर खुद शंभूसिंह उसे अपने साथ गाँव लाया,पर सवेरा होते ही गौरांबर को लगा,मानो वह बरसों बाद,अपने माँ-बाप के बीच,अपने घर पहुँच गया हो।गौरांबर की आँख खुलते ही वह घर,घर जैसा लगने लगा,जिसकी महीनों से उसे आदत ही छूट गयी थी। अगली सुबह शंभूसिंह ने उसे खुद जब जाकर उठाया,गौरांबर ने जैसे किसी नवाब की तरह आँखें खोलीं। उसे अपने पर,दिख रहे मंजर पर और गुजरी रात के वजूद पर जैसे एतबार नहीं आया। शंभूसिंह ने ...Read More

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आखेट महल - 8

आठ घण्टा भर बीतते-बीतते फिर गौरांबर की जेब में पच्चीस रुपये थे। स्टेशन पर अन्दर आकर सामान उठाने में के लाइसेंसधारी कुली एतराज करते थे और किसी बाहरी व्यक्ति को सामान उठाने नहीं देते थे। परन्तु ट्रक के साथ उसे भी ट्रक का खलासी ही समझ कर वहाँ घूम रहे कुलियों ने कुछ नहीं कहा और गौरांबर की कमाई हो गयी। गौरांबर स्टेशन के भीतर चला गया। स्टेशन पर कोलाहल था। शायद अभी-अभी किसी गाड़ी के आने का सिग्नल हुआ था। गौरांबर वहाँ एक बैंच पर बैठ गया और यात्रियों की भागादौड़ी देखने लगा। एक-दो मिनटों में ही गाड़ी ...Read More