रेत होते रिश्ते

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एकरात के दो बजे थे, लेकिन कमरे की बत्ती जली हुई थी। मँुह से चादर हटाकर मैंने देखा तो अवाक् रह गया। शाबान रो रहा था। मैंने उठकर घड़ी एक बार फिर देखी और उसके नजदीक पहुँच गया। वह मेरी ओर नहीं देख रहा था। देख भी रहा हो तो यह जान पाना बहुत मुश्किल था कि वह कहाँ देख रहा है क्योंकि पानी के दो बड़े मोती उसकी आँखों पर जड़े थे। डबडबाई आँखों के पाश्र्व से जैसे अदृश्य सिसकियों का नाद बज रहा था। मैंने करीब पहुँचकर हाथ उसके कंधे पर रखा किन्तु उसने मेरा हाथ झटक दिया।

Full Novel

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रेत होते रिश्ते - भाग 1

एकरात के दो बजे थे, लेकिन कमरे की बत्ती जली हुई थी। मँुह से चादर हटाकर मैंने देखा तो रह गया। शाबान रो रहा था। मैंने उठकर घड़ी एक बार फिर देखी और उसके नजदीक पहुँच गया। वह मेरी ओर नहीं देख रहा था। देख भी रहा हो तो यह जान पाना बहुत मुश्किल था कि वह कहाँ देख रहा है क्योंकि पानी के दो बड़े मोती उसकी आँखों पर जड़े थे। डबडबाई आँखों के पाश्र्व से जैसे अदृश्य सिसकियों का नाद बज रहा था। मैंने करीब पहुँचकर हाथ उसके कंधे पर रखा किन्तु उसने मेरा हाथ झटक दिया। ...Read More

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रेत होते रिश्ते - भाग 2

मैं सकपकाया। लेकिन तुरन्त ही संभलते हुए मैंने कहा— ‘‘वह मुझे निश्चित जगह पर मिलेगा सुबह।’’ ‘‘आपको इस समय पता कि वह कहाँ है?’’ ‘‘बिलकुल नहीं।’’ ‘‘उसका फोन नम्बर भी नहीं है आपके पास?’’ ‘‘मैंने कहा न, नहीं है। सुबह वह खुद हमसे मिलने वहाँ आयेगा और तब हम अपने ही साथ उसे ले आयेंगे।’’ ‘‘लेकिन ऐसा हो कैसे सकता है, सारी शाम आप उसके साथ थे और आपने उससे पूछा तक नहीं कि रात को वह कहाँ रहेगा।’’ ‘‘फिर वही बात!’’ अब मैं थोड़ा झल्लाने लगा था। बोला— ‘‘तुम बच्चों जैसी जिद क्यों पकड़े हुए हो? मुझ पर ...Read More

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रेत होते रिश्ते - भाग 3

मैं नहा-धोकर जब कमरे में आया तो यह देखकर आश्चर्यचकित रह गया कि शाबान इत्मीनान से बैठा हुआ अखबार रहा है। मेरे आने के बाद भी वह उसी तरह बैठा रहा। न उठा और न कुछ बोला। मैंने झुंझलाकर घड़ी देखते हुए कहा— ‘‘शाबान, साढ़े आठ बजे हैं और आधा घंटे में हम निकलेंगे। तुम तैयार तो हो जाओ। देर हो जायेगी।’’ शाबान ने मेरी ओर देखा तक नहीं। वह बैठा हुआ उसी तरह अखबार पढ़ता रहा। फिर लापरवाही से बोला—‘‘आप जाइये, मैं नहीं जाऊँगा।’’ ‘‘मगर क्यों?’’ मुझे आश्चर्य हुआ। मैंने कहा—‘‘वहाँ अरमान तुम्हारी राह देख रहा होगा, तुम ...Read More

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रेत होते रिश्ते - भाग 4

शाबान और अरमान के जाने के बाद पूरे चौबीस घंटे भी नहीं गुजरे कि एक समस्या सामने आ गयी। मेरे पास ही ठहरी हुई थी और सुबह ही पूरे दो दिन के अन्तराल के बाद मैं अपने ऑफिस में आया था। शाम को लगभग चार बजे मेरे पास फोन आया कि मेरे एक परिचित मित्र मुझसे मिलने के लिए आ रहे हैं। फोन आने के लगभग आधा घंटे बाद बादामी रंग की एक मारुति कार आकर रुकी और उसमें से निकलकर कमाल मेरे पास आया। बोला—‘‘सर पूछ रहे हैं कि आप उनके साथ बाहर चलेंगे या यहीं बैठकर बात ...Read More

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रेत होते रिश्ते - भाग 5

मैं ऑफिस में बैठा हुआ शाम को निकलने की तैयारी ही कर रहा था कि कमाल का फोन आया। थोड़ा आश्चर्य हुआ क्योंकि राज्याध्यक्ष साहब से मेरी सुबह ही फोन पर बातचीत हुई थी और उन्होंने मुझे बताया था कि वह एक जरूरी काम से दो दिन के लिए अहमदाबाद जा रहे हैं। क्या राज्याध्यक्ष साहब का जाने का कार्यक्रम रद्द हो गया या वह कमाल के पास मेरे लिए कोई सूचना छोड़ गये हैं—यही सब सोचते हुए मैंने कमाल से बात की। वह कह रहा था कि हम लोग आज शाम को मिलें। मैंने कमाल से कह दिया ...Read More

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रेत होते रिश्ते - भाग 6

सारा ट्रैफिक रुका हुआ था। उसे व्यवस्थित किया जा रहा था। काली सदन से लेकर नरीमन पॉइण्ट के सिरे सडक़ पर ढेर सारे पुलिस के आदमी खड़े थे। कई गाडिय़ाँ इधर-उधर गश्त लगा रही थीं। मुख्य गेट से लगभग पौन किलोमीटर के क्षेत्र में पार्किंग की जगह बिलकुल भर गयी थी और अब देर से आने वाले लोग काली सदन से काफी दूर गाडिय़ाँ खड़ी कर-करके पैदल ही आ रहे थे। ट्रैफिक वालों का काम भी पूरी मुस्तैदी से चल रहा था। बम्बई शहर की लगभग सभी साहित्यिक हस्तियाँ इस समय काली सदन का ही रुख किये हुए थीं। ...Read More

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रेत होते रिश्ते - भाग 7

गौतम होटल के पिछवाड़े का यह हिस्सा वीरान-सा पड़ा था। कहने के लिए एक छोटा-सा बगीचा यहाँ था, मगर की ओर होने के कारण उसकी समुचित देखभाल का कोई प्रबन्ध नहीं था। इस ओर पैण्ट्री का पीछे वाला दरवाजा खुलता था तो दरवाजे के बाहर की जगह का इस्तेमाल खाना बनाने के लिए होने वाले सहायक कामकाज के लिए किया जाता था। इस समय भी वहाँ पानी की बड़ी-सी टंकी के पास कुछ बरतनों का ढेर-सा पड़ा था। एक ओर बीयर की खाली बोतलें रखी थीं और पास के सूखे-से पेड़ पर बँधी एक रस्सी पर होटल में काम ...Read More

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रेत होते रिश्ते - भाग 8

हम लोग गेटवे ऑफ इंडिया वापस लौटे, तब तक हल्का-हल्का अँधेरा होने लगा था। शाबान काफी थक चुका था आरती की इच्छा भी अब घर लौटने की थी। उन्हें मालूम था कि मुझे अब आर्मी क्लब जाना है। आरती के चेहरे पर थकान के चिह्न नहीं थे किन्तु संभवत: उसे यह अहसास था कि उन लोगों के कारण मेरे किसी जरूरी काम में खलल न पड़े। इसी से उसने भी शाबान के साथ घर लौट जाने की इच्छा व्यक्त की। मैं उनसे अलग होकर टैक्सी से कोलाबा के लिए चल पड़ा। मैं जब तक वहाँ पहुँचा, राज्याध्यक्ष साहब आये ...Read More

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रेत होते रिश्ते - भाग 9

ग्लोबवाला के साथी बूढ़े से मिलने की योजना बनाते समय मेरे दिमाग में यह बात आयी कि यदि उस संजय को भी साथ में ले लिया जाये तो बेहतर होगा, जिसके कारण बूढ़े के क्रिया-कलापों की जानकारी मुझे मिली थी। मैंने संजय द्वारा मुझे दिये गये कार्ड पर उसका नम्बर देखकर फोन किया। संजय से तुरन्त बात हो गयी और वह उसी समय मेरे पास आने के लिए तैयार भी हो गया। मैंने उसे आने के लिए कह दिया और साथ ही यह हिदायत भी दे दी कि वह पूरे दिन का समय लेकर आये क्योंकि हमें उस बूढ़े ...Read More

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रेत होते रिश्ते - भाग 10

आज मेरी छुट्टी थी। शाबान किसी काम से सुबह से ही घर से निकल गया था और कह गया कि शाम तक ही लौटेगा। आरती को सुबह चाय पीते समय मैंने बताया था कि आज दोपहर को मैं थोड़ी देर के लिए केवल फिल्मसिटी जाऊँगा, बाकी आज मेरी छुट्टी ही है। लगभग दस बजे नहाने-धोने के बाद वह मेरे पास आयी और बोली—‘‘भैया, यदि आज आपके पास थोड़ा समय हो तो मैं बाजार चलना चाहती हूँ?’’ ‘‘चलूँगा।’’ मैंने तुरन्त कहा—‘‘क्या काम है? मेरा मतलब है कि हम लोग कहाँ चलें?’’ ‘‘आप देख लीजिये, आजकल तो हर जगह हर चीज़ ...Read More

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रेत होते रिश्ते - भाग 11

शाबान को जब मैंने बताया कि कल सुबह राज्याध्यक्ष साहब के साथ लोनावला चलने का कार्यक्रम है तो वह हो गया, क्योंकि वह पहले भी दो-एक बार वहाँ चलने की इच्छा जाहिर कर चुका था। आरती और अरमान भी चलने के लिए तैयार हो गये। हमने राज्याध्यक्ष साहब की कार के साथ-साथ एक और टैक्सी करने की व्यवस्था कमाल पर ही छोड़ दी। लोनावला बम्बई और पुणे के रास्ते के बीचोंबीच एक सुन्दर पहाड़ी घाट पर बना हुआ छोटा-सा शहर था, जहाँ दूर-दूर पहाड़ी सौन्दर्य के बीच बने शांत और हवादार बंगलों में ठहरकर लोग ताजा हवा और शांति ...Read More

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रेत होते रिश्ते - भाग 12 ( अंतिम भाग )

जोसफ नादिर से मेरा परिचय बिना किसी शक-शुबहे के परवान चढ़ गया। मैं एक विशुद्ध कारोबारी ग्राहक के तौर ही उससे कई बार मिल लिया था और वह अब मेरे प्रति पूर्ण आश्वस्त था। अपने गैरकानूनी और अमानवीय धन्धे के कई पहलू उसने मेरे सामने बेझिझक रख दिये थे। अपनी ओर से कोई विशेष जानकारी दिये बिना मैं उसके बारे में काफी कुछ जान लेने में कामयाब हो गया था। जोसफ एक पुराना खिलाड़ी था जो लगभग दो-तीन दशकों से इन गतिविधियों में लगा हुआ था। विज्ञापन एजेन्सी, ट्रेवल एजेन्सी और फोटोग्राफी की आड़ में उसका और उसके साथी ...Read More