उत्तरायण

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१. स्त्रीत्व पूछता हूं मैं जग से आज ललकार कर क्या करते हो संदेह तुम उस अद्वितीय फनकार पर हस्तक्षेप इस श्रृष्टि की रचना में मुझे बताओ तुम करते किस अधिकार पर क्यों कहते स्त्री को पुरुष के तू बराबर चल होता संभव ऐसा अगर तो क्यों करता स्त्री–पुरुष का भेद वो ईश्वर शर्म करो,क्यों घटाते मान स्त्रीत्व का उसको पुरुष के तुम बराबर कर जो मां बनकर सारे जग को चलना सिखाए उसको तुम क्या चलना सिखाओगे

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उत्तरायण - 1

१. स्त्रीत्वपूछता हूं मैं जग से आज ललकार कर क्या करते हो संदेह तुम उस अद्वितीय फनकार परहस्तक्षेप इस की रचना में मुझे बताओ तुम करते किस अधिकार परक्यों कहते स्त्री को पुरुष के तू बराबर चलहोता संभव ऐसा अगरतो क्यों करता स्त्री–पुरुष का भेद वो ईश्वरशर्म करो,क्यों घटाते मान स्त्रीत्व काउसको पुरुष के तुम बराबर करजो मां बनकर सारे जग को चलना सिखाएउसको तुम क्या चलना सिखाओगेजिसका कद स्वयं ऊंचा हो,जो स्वयं सशक्त होउसको क्या तुम ऊंचा उठाओगेक्या मानोगे तुम उनको खोकरजो अद्वितीय गुण स्त्री में विद्यमान हैआज भूल रही है अपना कर्तव्य पुरुषत्व में लिपटी,ईश्वर की वो ...Read More

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उत्तरायण - 2

१. पत्थर दिल डर के बिना कठोरता का कोई अस्तित्व ही नहींपर कठोरता को निष्ठुरता या निर्दयता तुम समझना कठोरता गुण है पदार्थ का,ऊर्जा का नहीं।भ्रम से निकल सचिन, क्योंकि कठोर हृदय या पत्थर दिल कुछ होता ही नहीं। Rosha२. आर्य कौन है?आर्य कौन है?जो सुबह को दस चिड़ियों का पेट भरे औरशाम को भोजन में मात्र एक मुर्गा चरे। या फिर,वह जो धर्म के नाम पर धन एकत्र करे औरधर्म पर एक रुपया भी व्यय न करे। यावह जो शीश पर लम्बी–सी शिखा धारण करे औरजीवन–भर अज्ञान में ही जिए व अज्ञान में ही मरे। यावह, ‘आर्य’ जिसके ...Read More