सोने के कंगन

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रात के लगभग बारह बज रहे थे कि तभी कुशल को उसकी पत्नी अनामिका के कराहने की आवाज़ सुनाई दी। वह तुरंत ही उठा और लाइट जलाई। उसने देखा कि अनामिका दर्द के कारण तड़प रही थी। यह देखते ही कुशल ने पूछा, “अनामिका बहुत दर्द हो रहा है क्या?” “नहीं बहुत तो नहीं लेकिन जब भी होता है ज़ोर से ही होता है, फिर रुक जाता है फिर…!” “हाँ-हाँ डरो नहीं, मैं माँ को बुलाकर लाता हूँ,” कहते हुए वह अपनी माँ के कमरे में आ गया। दरवाजे पर दस्तक देते हुए उसने आवाज़ लगाई, “माँ …माँ देखो ना अनामिका को दर्द हो रहा है।” यह सुनते ही कुशल की माँ सोनम उठ बैठी। उसने लपक कर दरवाज़ा खोला और कहने लगी, “अभी तो समय है कुशल, अभी से दर्द…? चलो जल्दी से हम अस्पताल चले चलते हैं। डॉक्टर को दिखाना ही बेहतर होगा।”

Full Novel

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सोने के कंगन - भाग - १

रात के लगभग बारह बज रहे थे कि तभी कुशल को उसकी पत्नी अनामिका के कराहने की आवाज़ सुनाई वह तुरंत ही उठा और लाइट जलाई। उसने देखा कि अनामिका दर्द के कारण तड़प रही थी। यह देखते ही कुशल ने पूछा, “अनामिका बहुत दर्द हो रहा है क्या?” “नहीं बहुत तो नहीं लेकिन जब भी होता है ज़ोर से ही होता है, फिर रुक जाता है फिर…!” “हाँ-हाँ डरो नहीं, मैं माँ को बुलाकर लाता हूँ,” कहते हुए वह अपनी माँ के कमरे में आ गया। दरवाजे पर दस्तक देते हुए उसने आवाज़ लगाई, “माँ …माँ देखो ना ...Read More

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सोने के कंगन - भाग - २

कुशल बड़े ही भारी मन से अपनी माँ के सोने के कंगन लेकर साहूकार के पास पहुँचा। साहूकार को दिखाते हुए उसने पूछा, “क्या इन कंगनों को गिरवी रखकर आप मुझे तीन लाख रुपये दे सकते हैं? जब भी मेरे पास पैसे की व्यवस्था होगी मैं यह कंगन वापस ले जाऊंगा।” वज़न दार सोने के सुंदर कंगनों को देखकर साहूकार की आँखों में चमक आ गई। उसने कंगनों की शुद्धता और वज़न देखने के बाद कहा, “ठीक है, मैं तुम्हें तीन लाख रुपये दे रहा हूँ पर इसका ब्याज तुम्हें देते रहना होगा।” कुशल ने दुखी मन से कंगन ...Read More

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सोने के कंगन - भाग - ३

धीरे-धीरे वक़्त गुजरता रहा लेकिन कंगन वापस लाने का इंतज़ाम ना हो पाया। आर्थिक परिस्थिति के कारण उस कंगन जोड़े को उनके परिवार ने सच में भुला दिया और उन्हें साहूकार को बेच दिया। अब तक ब्याज इतना हो चुका था कि कुछ पैसे भी इन लोगों के हाथ नहीं लगे। कुशल ने कहा, “माँ मुझे माफ़ कर देना मैं आपके कंगन ना छुड़ा पाया।” “कुशल यह क्या कह रहा है तू? आगे से ऐसे शब्द कभी मुँह से नहीं निकालना। हम सब साथ-साथ हैं, इतने प्यार से रहते हैं, वही तो हमारी असली पूंजी है। दौलत का क्या ...Read More

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सोने के कंगन - भाग - ४

सारिका का रिश्ता पक्का होने से इस समय घर में ख़ुशी का माहौल था, सब बेहद खुश थे। सोनम अपनी बहू अनामिका से कहा, “अनामिका अब हमें वह गहने जो हमने सारिका के लिए बनवाए हैं, बैंक के लॉकर से निकाल कर सारिका को दिखा देना चाहिए।” “हाँ माँ वह तो इन गहनों के बारे में जानती ही नहीं है। उसके लिए तो यह बहुत बड़ा सरप्राइज होगा।” “हाँ वह बहुत ख़ुश हो जाएगी।” सारिका अपनी शादी को लेकर बहुत ख़ुश थी। अनामिका ने गहने लाकर सारिका को दिखाते हुए उसकी ख़ुशी को दुगना कर दिया। गहने देखते से ...Read More

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सोने के कंगन - भाग - ५

सारिका और उसका पूरा परिवार आज रजत के घर मिलने आया था। घर के बाहर टैक्सी से उतरते ही आलीशान बंगला और उसके बाहर खड़ी दो-दो कारें देखीं। कुशल के मुँह से निकल गया, “वाह यह लोग तो काफ़ी रईस लगते हैं। घर बाहर से इतना सुंदर है तो अंदर से तो और भी बढ़िया होगा, है ना अनु?” “हाँ तुम ठीक कह रहे हो।” सारिका की तरफ़ देखते हुए कुशल ने कहा, “राज करेगी हमारी बिटिया।” सारिका ने शर्माते हुए कहा, “क्या पापा आप भी …!” तब तक रजत और उसके मॉम डैड उन्हें लेने घर के बाहर ...Read More

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सोने के कंगन - भाग - ६

विवाहोपरांत सारिका अपनी ससुराल पहुँच गई। बहुत ही धूम धाम से उसका गृह प्रवेश किया गया। अपना इतना भव्य देखकर सारिका फूली नहीं समा रही थी। सोनिया उस पर अपना प्यार इस तरह लुटा रही थी मानो बरसों बाद उनकी बेटी घर आई हो। पूरा दिन रस्में निभाने में कैसे निकल गया किसी को पता ही नहीं चला। धीरे-धीरे चाँद आसमान में नज़र आने लगा। रजत के सूने कमरे में आज हर तरफ़ फूल अपनी सुंदरता बिखेर रहे थे। सुहाग की सजी हुई सेज उन दोनों का इंतज़ार कर रही थी। रजत और सारिका के मिलन की यह पहली ...Read More

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सोने के कंगन - भाग - ७

एक दिन सारिका रजत के साथ घूमने जा रही थी। वे दोनों तैयार होकर जैसे ही नीचे आए सारिका कदम कार पार्किंग की तरफ़ मुड़ गए। परंतु ये क्या …? पार्किंग से कार नदारद थी। उसने चौंकते हुए रजत को आवाज़ लगाई, “रजत देखो अपनी कार यहाँ नहीं है।” रजत ने कहा, “अरे हाँ कार सर्विसिंग के लिए गई है। मैं तुम्हें बताना भूल गया।” रजत की आवाज़ में विश्वास कम और डर ज़्यादा झलक रहा था। उसने कहा, “चलो हम स्कूटर से चलते हैं।” “हाँ ठीक है चलो। वैसे कार कब तक वापस आएगी?” “पता नहीं सारिका तीन-चार ...Read More

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सोने के कंगन - भाग - ८

आज सारिका को अपने परिवार की डूबती हुई कश्ती के ऊपर सजी-धजी गहनों का वज़न उठा कर बैठी हुई सास सोनिया दिखाई दे रही थी। उसे आश्चर्य हो रहा था कि इन हालातों में भी मॉम तो आज भी इतने गहने पहन कर गई हैं। क्या उन्हें उनका वज़न नहीं लग रहा होगा? रजत के हाथ में तीन लाख की घड़ी …? क्या उसे सस्ती घड़ी में समय नहीं दिखेगा? क्या डैड की घड़ी भी इतनी महंगी है …? इसीलिए सही समय दिखाती है। आज उसे अपनी दादी के कंगन जो उसने कभी नहीं देखे थे केवल चर्चा में ...Read More

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सोने के कंगन - भाग - ९

सारिका के मुँह से सोने के कंगन की बात सुनकर रजत स्तब्ध था। उन शब्दों ने रजत को सोचने मजबूर कर दिया। उसने सारिका से पूछा, “सारिका तुम कहना क्या चाहती हो?” “रजत जैसा मेरे उस परिवार में हुआ था बिल्कुल ऐसा ही हमारे इस परिवार में भी हो सकता है।” रजत को समझ नहीं आ रहा था कि यह कैसे संभव है। उसने कहा, “सारिका वह कैसे?” सारिका ने उसे समझाते हुए कहा, “रजत जिस सुख की खोज हमारा परिवार कर रहा है, उसे पाने के साधनों को तो हम सब ने अपने तन पर दुशाले की तरह ...Read More

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सोने के कंगन - भाग - १० (अंतिम भाग)

अब तक रजत के मॉम डैड घर आ चुके थे और यह सारिका और रजत को नहीं पता था। सारिका रजत को समझा रही थी तब उसने कहा, “तुम सही कह रही हो सारिका अब तो इस मुसीबत का अंत आ जाना चाहिए बस मॉम डैड मान जाएं …!” तभी रजत की मॉम की आवाज़ आई, “मानेंगे क्यों नहीं … जिस घर में इतनी सुशील, गृह लक्ष्मी का गृह प्रवेश हुआ हो; उसकी बात मानेंगे क्यों नहीं?” इस तरह कहते हुए वह अंदर आ गईं। दरवाज़ा तो केवल उड़का हुआ ही था, उनके साथ रजत के डैड भी थे। ...Read More