जीवन वीणा

(15)
  • 59.4k
  • 1
  • 24.1k

वीणा घर में रखी पुरानी , लेकिन नहीं बजाना आया । सारा घर उस पर चिल्लाया,जिस बच्चे ने हाथ लगाया।। जीवन वीणा के तारों की रीति -नीति नहिं हमने जानी । वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी ।।१।। मुझे पता है मेरे जैसे , हैं अनेकश: जीवन धारी । भटकगए जगके जंगलमें,भला-बुरा नहिं सकें विचारी।। समझाइश है यह उन सबको,जो कर रहे यहां नादानी । वीणा घर में रखी पुरानी,कदर न उसकी हमने जानी ।।२।।

Full Novel

1

जीवन बीणा - 1

अपनी बात --------------वीणा घर में रखी पुरानी , लेकिन नहीं बजाना आया ।सारा घर उस पर चिल्लाया,जिस बच्चे ने हाथ लगाया।।जीवन वीणा के तारों की रीति -नीति नहिं हमने जानी ।वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी ।।१।।मुझे पता है मेरे जैसे , हैं अनेकश: जीवन धारी ।भटकगए जगके जंगलमें,भला-बुरा नहिं सकें विचारी।।समझाइश है यह उन सबको,जो कर रहे यहां नादानी ।वीणा घर में रखी पुरानी,कदर न उसकी ...Read More

2

जीवन वीणा - 2

किया बजाना बंद, फेंकने वाले ने फिर वीणा मांगी ।अंतर्मन पछतावा जागा,ललक बजाने की भी जागी ।।पर फकीर ने कर दिया, पहले सीखो इसे बजानी । वीणा घर में रखी पुरानी,कदर न उसकी हमने जानी ।।कहो करोगे क्या तुम लेकर, यह बेकार तुम्हारे घर है ।तोड़ फोड़ फेंकोगे इसको, हमको पूरा पूरा डर है ।।अगर सीखना हो तो दूंगा,लो संकल्प हाथ ले पानी ।वीणा घर में रखी पुरानी,कदर न उसकी हमने जानी।।शांति भंग होगी तुम सबकी, अगर न इसे बजाना आया।इसीलिए मुझपर रहने दो,उस फकीर ने फिर समझाया ।।अच्छी खूब बजा सकते हो,हाथ सभीके कला सुहानी ।वीणा घर में ...Read More

3

जीवन वीणा - 3

मुक्ति न पूर्व संस्कारों से, चाहें नये गढ़ रहे न्यारे ।ध्यान देते कभी ध्यान पर,भौतिकता में वक्त गुजारे।।इस दुनियां की चकाचौंध में, करते रहे सदा नादानी ।वीणा घर में रखी पुरानी,कदर न उसकी हमने जानी ।।अगर उतरते ध्यान गुहा में, तो बुद्धत्व हमें मिल जाता।आत्मज्ञान वा ब्रह्मज्ञान का,ब्रह्मकमल अंदर खिल जाता।।पर अज्ञान सिंधु धारा में, व्यर्थ बहादी जीवन दानी ।वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी।।जप,तप,ध्यान,योग की नौका,चढ़ अज्ञान सिंधु तरजाते।आत्मभाव में सुस्थिर होकर,शुचि बुद्धत्व प्राप्त करजाते।।बुद्ध, विवेकानंद आदि बन,लिख सकते थे अमर कहानी।वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी ।।हम चाहें तो ...Read More

4

जीवन वीणा - 4

दुर्लभ देह पाय मानव की, जो उन्नति पथ नहीं बनाते ।वह कृतघ्न हैं मंद बुद्धि हैं, अपना जीवन व्यर्थ ।।अमृत पात्र दिया परमेश्वर, उसमें भरते गंदा पानी ।वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी।।ब्रह्मज्ञानयुत सद्गुरु शरणम्, होकर जीवन विधा विचारो।जीवन वीणा के तारों को,खींचो,कसो और झंकारो ।।अहो भाग्य सौभाग्य मनुज तन,भरो पात्र में अमृत पानी।वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी ।।विकसित हो आनंद तत्व तो,सुख सौरभ वयार आएगी।बन्धन नहीं रहेगा कोई, मुक्ति गीत सन्मति गाएगी ।।राह बता सकता वह सद्गुरु, ब्रह्म ज्ञान का जो विज्ञानी।वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी ...Read More

5

जीवन वीणा - 5

केवल भौतिक जीवन जीना, एकांकी वा अनहितकारी ।अध्यात्मिक जीवन के बिन नहिं,जीवन होय पूर्णता धारी।।धर्म-अर्थ वा काम-मोक्ष की, श्रेष्ठ नीति बखानी ।वीणा घर में रखी पुरानी,कदर न उसकी हमने जानी ।।धर्म-अर्थ वा काम-मोक्ष का, है अद्भुत पुरुषार्थ चतुष्टय ।भौतिक,अध्यात्मिक जीवन का,यह अद्भुत संगम है निश्चय।।अर्थ-काम भौतिक जीवन है, धर्म-मोक्ष प्रभुता अगवानी।वीणा घर में रखी पुरानी,कदर न उसकी हमने जानी ।।धर्म यदपि अध्यात्म नहीं है,पर भौतिकता हित सुखकारी।जहां उपेक्षा धर्म-मोक्ष की, वहां बने जन भ्रष्टाचारी ।।अनाचार, व्यभिचार घृणा वा, नफरत करती खींचातानी ।वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी ।।अंदर से अशांत है मानव व्याकुल है बेचैन ...Read More

6

जीवन वीणा - 6

तब निभता कर्तव्य सही से,जब दस गुण अंदर आ जाते ।हम ईमान और निष्ठा से,निज स्वधर्म पथ कदम बढ़ाते सम्पदा प्राप्त करने में, ध्यान धर्म का रखते ज्ञानी ।वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी ।।क्या है उचित और क्या अनुचित,नैतिक और अनैतिक सारे।इच्छा और कामनाओं के, पथ पर धर्म करे उजियारे ।।इच्छा पूर्ति हेतु शुभता का, ध्यान कराए धर्म कहानी ।वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी।।अनुचित और अनैतिकता से, हमको धर्म बचाता रहता ।धर्म दृष्टि से काम होय तो,शांति,सरसता वा सुख बहता।।हो जाता जब व्यक्ति धर्ममय,बने नहीं जग का व्यवधानी।वीणा घर ...Read More

7

जीवन वीणा - 7

काम तत्व के साथ, धर्म की मर्यादा को जोड़ा जाए ।तभी मोक्ष का साधन बनता,वरना भवबंधन बन जाए।।धर्म हीन काम,शोक,संताप,रोग लाए शैतानी ।वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी।।जीवन वीणा के झंकृत स्वर,जब गूंजें अंतर आंगन में ।प्रेम प्रवाह बहे अंतर्मन, सिमट जायं सब अपनेपन में।।अनगढ़ लहरें हृदय सिंधु कीं, खुद उच्चारें प्रेम कहानी ।वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी ।।यह अमूल्य उपहार प्रकृति का,परिवर्तनकारी हरगति का।सीख लिया यदि इसे बजाना,मिल जाए रस्ता सद्गति का।।वीणा की उत्ताल तरंगें,लगतीं सबको बहुत सुहानी ।वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी।।शौक शौक ...Read More

8

जीवन वीणा - 8

पिंजड़ा तोड़ न पाया पंछी, आजादी का स्वप्न अधूरा ।उड़ना चाहा मुक्त गगन में, पर मंसूबा हुआ न पूरा पता कितने जन्मों से,इस पिंजड़े में बंद जवानी ।वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी ।।उड़ने की उन्मुक्त गगन में, यद्यपि रही कल्पना मेरी ।विषय वासना,लालच,डर की,लगी रही अनचाही ढेरी।।रहा सिसकता बस पिंजड़े में,बाहर निकल न पाया प्रानी।वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी ।।आया एक खयाल एक दिन,युक्ति करूं बाहर जाने की।कीन्ही परमेश्वर से विनती,अपना पिंजड़ा खुलवाने की।।परमेश्वर ने मेरी सुनली,बालक ने करदी नादानी ।वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने ...Read More

9

जीवन वीणा - 9

तोड़ सकोगे सारे बंधन, मुक्ति मार्ग पर कदम बढ़ाकर ।मुक्त स्वतंत्र हो सकेंगे सब, परमानंद व्योम में जाकर ।।अध्यात्मिक क्षितिजमें,उड़ जाओ कुछ वहां न हानी।वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी ।।यह तो सच है जीवन अपना, पहले भी था और रहेगा ।अस्थाई तन यहां मिला जो, रहने की वह यहीं कहेगा।।लेकिन जाना भी निश्चित है,इस दुनियां से डाल रबानी।वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी ।।नहीं यथार्थ रूप को जबतक, पहचानोगे,दुखी रहोगे ।देहान्तरण हमेशा होगा, बार - बार यह कष्ट सहोगे ।।मानव जीवन ही वह अवसर,जो दे सकता मुक्ति सुहानी।वीणा घर में ...Read More

10

जीवन वीणा - 10 - अंतिम, समापन किश्त

आत्मिकी आम आदमी की -यह आम आदमी की आत्म कथा है .‌संसार रूपी जाल में बंद व्यक्ति भगवान के को न तो देख पाता है और न ही महसूस कर पाता है.जबतक उस पर सद्गुरु की कृपा नहीं होती . ...Read More