तर्ज़नी से अनामिका तक

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उपरोक्त स्वरचित कविताएँ मेरे जीवन का आधार हैं और इनकी भावनाएँ मेरे लिए प्रेरणा स्त्रोत हैं। मानव अपने जीवन की पहली श्वांस से मृत्यु की अंतिम श्वांस तक संघर्षरत् रहकर अपनी कल्पनाओं को हकीकत में परिवर्तित करने हेतू प्रयासरत् रहता है। मैंनें कभी खुशी कभी ग़म के बीच जीवन के चौसठ बसंत बिताकर अभी तक के जीवन में जो कुछ देखा सुना और समझा उन्हें प्रेरणादायक घटनाओं के माध्यम से प्रस्तुत किया है। यह रोचक होने के साथ-साथ प्रेरणास्पद भी रहे, ऐसा मेरा प्रयास है। इस पुस्तक को सजाने, सँवारने में श्री श्याम सुंदर जेठा, श्री राजेश पाठक एवं श्री देवेन्द्र राठौर का अमूल्य सहयोग प्राप्त होता रहा है। मैं उनके प्रति हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ।

Full Novel

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तर्ज़नी से अनामिका तक - भाग १

आत्मकथ्य नवनिर्माण जीवन में मंथन से अनवरत् सृजन सुख-समृद्धि, स्वास्थ्य और मान-सम्मान प्राप्त करने हेतु मानव कर रहा है सतत् प्रयत्न जीवन में धर्म से कर्म बनाता है कर्मवीर मोह-माया, दुख और सुख हैं हमारी छाया, जीवन रहे व्यस्त निरन्तर रहे सृजनशील और रहे प्रयासरत् धैर्य सहित आत्म-मंथन में ऋतुओं का आगमन और निर्गमन होता ही रहेगा और मानव जीवन की दिशा प्राप्त करता ही रहेगा। जीवन का आधार मेहनत, ईमानदारी, लगन, तप, त्याग और ...Read More

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तर्ज़नी से अनामिका तक - भाग २

1. दृढ़ संकल्प ठंड से ठिठुरती हुयी, घने कोहरे से आच्छादित रात्रि के अंतिम प्रहर में एक पर सवार नवयुवक अपने घर वापिस जा रहा था, उसे एक चैराहे पर कचरे के ढ़ेर में से किसी नवजात बच्चे के रूदन की आवाज सुनाई दी। जिसे सुनकर वह स्तब्ध होकर रूककर उस ओर देखने लगा, वह यह देखकर अत्यंत भावुक हो गया कि एक नवजात लडकी को किसी ने कचरे के ढ़ेर में फेंक दिया है। अब उस नवयुवक के भीतर द्वंद पैदा ...Read More

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तर्ज़नी से अनामिका तक - भाग ३

११. समानता का अधिकार एक वृक्ष जो उम्रदराज हो चुका था और कभी भी जमीन पर होने की स्थिति में था। वह अपनी जवानी के दिनो को याद कर रहा था जब उसकी चारों दिषाओं में फैली हुई षाखाओं के नीचे पथिक आराम करते थे और बच्चे फलों का आनंद लेते थे। एक वृद्ध व्यक्ति उसके तने का सहारा लेकर विश्राम करने लगा। वह मन ही मन सेाच रहा था कि उसका एक पुत्र और पुत्री दो बच्चे है। उसने अपने पुत्र पर पुत्री की अपेक्षा ...Read More

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तर्ज़नी से अनामिका तक - भाग ४

२१. जहाँ लक्ष्मी का निवास वहाँ सरस्वती का वास रामकिषोर नगर के प्रसिद्ध उद्योगपति थे। वे पत्नी एवं तीन पुत्रों के साथ सुख, समृद्धि एवं वैभव का जीवन व्यतीत कर रहे थे। एक दिन उन्हें सपने में लक्ष्मी जी ने दर्षन देकर कहा कि मैं बहुत समय से तुम्हारे यहाँ विराजमान हूँ, अब मेरा समय यहाँ से पूरा हो चुका है और मैं दो तीन दिन में प्रस्थान करने वाली हूँ। तुम और तुम्हारे परिवार ने मेरी बहुत सेवा सुश्रुषा की है इसलिये मैं चाहती हूँ ...Read More

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तर्ज़नी से अनामिका तक - भाग ५

३१. आपातकाल मेरे जीवन का स्वर्णिम काल श्री अजय विश्नोई जबलपुर ही नही बल्कि मध्य में भा.ज.पा. के वरिष्ठ एवं महत्वपूर्ण नेताओं में अपना विषिष्ट स्थान रखते है। वे अपनी स्पष्टवादिता, ईमानदार व्यक्तित्व एवं नीतिगत राजनीति के लिये जाने जाते है। उनसे चर्चा के दौरान उन्होंने बताया कि उनके जीवन का स्वर्णिम काल आपातकाल के दौरान विभिन्न जेलों में बिताए हुए दिन है। उनकी बात सुनकर आष्चर्यचकित होकर मैंने उनसे पूछा यह कैसे संभव है और इन स्वर्णिम दिनों में आपके अनुभव जो कि देष के युवाओं के ...Read More

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तर्ज़नी से अनामिका तक - भाग ६

41. संकल्प ही सफलता का सूत्र है श्री संजय सेठ एक सुप्रसिद्ध चार्टर्ड एकाऊंटेंट होने के साथ संस्कारधानी जबलपुर के वरिष्ठ चिकित्सक स्वर्गीय डाॅ. जे.एन. सेठ के ज्येष्ठ पुत्र भी है। वे नगर के सुप्रसिद्ध नर्मदा क्लब जिसका निर्माण ब्रिटिष षासन काल में सन् 1889 में हुआ था और इसी क्लब में विष्व में सबसे पहली बार स्नूकर का खेल खेला गया था। वह ऐतिहासिक टेबिल जिस पर इस खेल को खेला गया था आज भी यहाँ पर सुरक्षित है। ऐसे प्रतिष्ठित नर्मदा क्लब में वे सन् ...Read More

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तर्ज़नी से अनामिका तक - भाग ७

51. हुनर बनारस में दो मित्र महेष और राकेष रहते जिन्हें मिठाईयाँ एवं चाट बनाने में हासिल थी। उनके बनाये हुए व्यंजन बनारस में काफी प्रसिद्ध थे। एक दिन इन दोनो के मन मंे विदेष घूमने की इच्छा जागृत हुई। उन्होंने सोच विचार करके इसके लिए चीन जाने का निष्चिय किया। इस हेतु वे दिन रात कडी मेहनत करके रूपया इकट्ठा करने लगे। इस दौरान उन्होेने अपना पासपोर्ट बनवाकर अन्य सभी औपचारिकताएँ पूरी करके अपने संचित धन से टिकिट लेकर चीन के गंजाऊ षहर पहुँच गये। उन्हें वहाँ ...Read More

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तर्ज़नी से अनामिका तक - भाग ८

61. जागरूकता यह बात लगभग तीस वर्ष पुरानी है जब कोलकाता में हिंदुस्तान मोटर्स का एंबेस्डर बनाने का कारखाना हुआ करता था। उस कारखाने के मालिक बिड़ला जी एक बार दमदम एयरपोर्ट पर अपने विमान के निर्धारित समय से पहले आ जाने के कारण अपनी गाड़ी आने का इंतजार कर रहे थे। उन्होने मन में सोचा कि समय क्यों बेकार नष्ट किया जाए। आज टैक्सी लेकर आॅफिस चले जाते है और उन्हेाने ऐसा ही किया और वे टैक्सी में रवाना हो गया। रास्ते में बिडला जी ने समय व्यतीत ...Read More

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तर्ज़नी से अनामिका तक - भाग ९

71. संत जी नर्मदा नदी के तट पर एक संत अपने आश्रम में रहते थे। उन्होंने आश्रम को नया स्वरूप एवं विस्तार करने की इच्छा अपने एक व्यापारी षिष्य को बताई उस षिष्य ने अपनी सहमति देते हुए उन्हें इस कार्य को संपन्न कराने हेतु अनुदान के रूप में अपनी दो हीरे की अंगूठीयाँ भेंट कर दी। यह देखकर संत जी प्रसन्न हो गये और उन्होंने दोनों अंगूठियों की सुंदरता को देखते हुए उन्हें संभालकर अलमारी में रख दी। एक दिन एक भिखारी जो कि अत्यंत भूखा एवं प्यासा था ...Read More

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तर्ज़नी से अनामिका तक - भाग १०

81. समाधान स्वामी प्रषांतानंद जी से उनके एक षिष्य ने पूछा कि मेरे तीन प्रष्न है समाधान मैं चाहता हूँ। यह इस प्रकार हैं 1. जीवन में तनाव व चिंता कैसे समाप्त हो ? स्वामी जी बोले इस प्रष्न का उत्तर बहुत सरल है। तुम अपने जीवन में ऐसी परिस्थितियाँ ही ना आने दो जो कि तनाव और चिंता को जन्म दे। यदि किसी कारण से तनाव मन से नही निकल रहा हो तो उसका भी उपाय है। यह याद रखो कि चतमअमदजपवद पे इमजजमत जीमद बनतमण् एक ...Read More

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तर्ज़नी से अनामिका तक - भाग ११

91. फिजूलखर्ची का दुष्परिणाम हमारे देष के प्रसिद्ध धार्मिक एवं पर्यटन स्थल वाराणसी षहर में एक सुषिक्षित एवं संपन्न परिवार में एक बालक ने जन्म लिया था। वह जब वयस्क हुआ तब उसका रहन सहन राजा महाराजाओं के समान खर्चीला था। अपनी प्रारंभिक षिक्षा पूर्ण करने के उपरांत उसने हिंदी में लेखन प्रारंभ किया और वह एक प्रखर लेखक एवं कवि के रूप में प्रसिद्ध हो गया। उसने हिंदी साहित्य के क्षेत्र में अपने रचनात्मक सृजन से बहुत प्रसिद्धि प्राप्त की थी। वह एक विद्वान व्यक्ति के रूप में जाने जाते थे। ...Read More

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तर्ज़नी से अनामिका तक - भाग १२ - अंतिम भाग

101. नैतिकता का तालाब यह घटना कई वर्ष पूर्व की है परंतु पीढी दर पीढी वहाँ आसपास के निवासियों की जुबान पर आज भी रहती है। जबलपुर को तालाबों को षहर भी कहा जाता था जिनमें से एक तालाब के निर्माण का अदभुत प्रसंग है जो कि आज भी हमारे लिए आदर्ष है। रामानुज नाम के एक जमींदार के यहाँ एक बालक का जन्म हुआ परंतु दुखद बात यह थी कि उस बालक की माता उसे अपना स्वयं का दूध पिलाने में असमर्थ थी। ऐसी विकट परिस्थिति में एक ...Read More