बात न करो जात की

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कई वर्षों से न जाने कितना कुछ पढ़ी थी!लेकिन उसमें ज्यादातर राजा रानी के किस्से थे,पढ़ने में वह बहुत अच्छे लगते थे,मगर लिखना मैं कुछ और चाहती थी!उस तरह के किस्से फिर से लिखकर क्या होगा ठीक है उनसे दिल बहला होता है! मगर हम आखिर कब तक इसी तरह के दिल बहलाव कहानियां पढेंगे और लिखेंगे!इस तरह तो इतिहास के पन्नों से नाम ही मिट जाएंगे!जरा अपने समाज के हालत भी तो देखो कैसे मुर्दों की नींद सो रहा है!ऐसे सामाजिक को दिल बहलाने की जरूरत है या झकझोर कर उन्हें जगाने की?न जाने कब से सो रहे हैं

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बात न करो जात की - 1

कई वर्षों से न जाने कितना कुछ पढ़ी थी!लेकिन उसमें ज्यादातर राजा रानी के किस्से थे,पढ़ने में वह बहुत लगते थे,मगर लिखना मैं कुछ और चाहती थी!उस तरह के किस्से फिर से लिखकर क्या होगा ठीक है उनसे दिल बहला होता है! मगर हम आखिर कब तक इसी तरह के दिल बहलाव कहानियां पढेंगे और लिखेंगे!इस तरह तो इतिहास के पन्नों से नाम ही मिट जाएंगे!जरा अपने समाज के हालत भी तो देखो कैसे मुर्दों की नींद सो रहा है!ऐसे सामाजिक को दिल बहलाने की जरूरत है या झकझोर कर उन्हें जगाने की?न जाने कब से सो रहे हैं ...Read More

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बात ना करो जात की - 2

तभी चाची की नजर मुझ पर पड़ती है और कहती अच्छा बिटिया जरा बांस वाली को खाना देते आना मैं जाती हूं बास बलि के हाथों में चुपचापखाना की थाली रख देती हूं! बाहसबली को देखकर ऐसा लगता है कि बेचारा भूख के मारे तड़प रहा है कब से आंखें लगाए इंतजार में राह जोह रहा था !कुछ झण के बाद चाची आती है मैं समझ पाती कि उसे पहले वह चिलाउट अरे बिटिया तूने क्या कर दिया ,उसको खाना इसके बरतन में देनी थी ना कि अपने बर्तन में तूने बर्तन खराब करती हाय मेरी मेरे धर्म भ्रष्ट हो गए!मैं ...Read More

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बात न करो जात की - 3

ठाकुर राम सिंह हाथ मुंह धोकर खाना पर बैठे थे कि, लखन बुलाने आया!ठाकुर साहब और ठाकुर साहब हारते दरवाजे के बाहर आवाज लगाता है, (तभी रवि ठाकुर राम सिंह की मंझिला बेटा) क्या हुआ लखन भैया काहे इतना हाफ रहे हो?अरे क्या बताएं रवि बाबू गांव में आफताब और शंकर के बीच झगड़ा हो गया हैं इसलिए मालिक को आवाज लगा रहे हैं ,ठाकुर ठाकुर साहब है क्या?रवि-आप बाहर रुकिए अभी बावजी को बुलाता हूं!लखन- बहुत मेहरवानी होगी,रवि- बाबुजी खाना हो जाए तो बाहर लाखन आपका इंतजार कर रहा है,ठाकुर - झिक हैं आता हुं,(कुछ मिनट बाद राम ...Read More