यूँ ही राह चलते चलते

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चाय की चुस्की लेते हुए रजत बोले ’’ अगर तुम मुझे पाँच लाख रुपये दो तो मैं तुम्हें एक सरप्राइज दे सकता हूँ। ‘‘ ’’ ये कौन सा सरप्राइज है जिसकी कीमत पाँच लाख है?‘‘ ’’घाटे में नहीं रहोगी ये वादा है। ‘‘ बात को मजाक में लेते हुए अनुभा ने भी हाँ कह दी । बात आई गई हो गई। शाम को उसे पता चला कि बात गंभीर थी और उसे सच में पाँच लाख का इंतजाम करना होगा । पर सरप्राइज इतना आकर्षक था कि अनुभा को पाँच लाख का सौदा भी सस्ता लगा । उन्नीस दिनों का यूरोप भ्रमण का पर्यटन कम्पनी का विज्ञापन था । अनुभा को विश्वास नहीं हो रहा था कि उसका वर्षों का सपना पूरा होने की कगार पर है।

Full Novel

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यूँ ही राह चलते चलते - 1

यूँ ही राह चलते चलते -1- चाय की चुस्की लेते हुए रजत बोले ’’ अगर तुम मुझे पाँच लाख दो तो मैं तुम्हें एक सरप्राइज दे सकता हूँ। ‘‘ ’’ ये कौन सा सरप्राइज है जिसकी कीमत पाँच लाख है?‘‘ ’’घाटे में नहीं रहोगी ये वादा है। ‘‘ बात को मजाक में लेते हुए अनुभा ने भी हाँ कह दी । बात आई गई हो गई। शाम को उसे पता चला कि बात गंभीर थी और उसे सच में पाँच लाख का इंतजाम करना होगा । पर सरप्राइज इतना आकर्षक था कि अनुभा को पाँच लाख का सौदा भी ...Read More

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यूँ ही राह चलते चलते - 2

यूँ ही राह चलते चलते -2- कमरे में आ कर लम्बे सफर के बाद वो पीठ सीधी करने को ही थे कि आधा घंटा बीत गया।अनुभा ने रजत से कहा ‘‘उठिये, सुमित ने ठीक आधे घंटे बाद नीचे मिलने को कहा था’’। ‘‘ क्या यार अभी तो पैर भी सीधे नहीं हो पाये हैं’ रजत ने करवट बदलते हुए कहा । मन तो अनुभा का भी कुछ देर लेटने का हो रहा था पर सुमित ने पहले ही विनम्रता की चाशनी में लपेट कर सचेत कर दिया था कि समय की ढील सहन नहीं की जाएगी और जो देर ...Read More

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यूँ ही राह चलते चलते - 3

यूँ ही राह चलते चलते -3- आज से तीन दिनों तक सबको क्रूस (पानी के जहाज ) का आनन्द था । क्रूस उनकी प्रतीक्षा में पलकें बिछाए, सागर तट के पाइरियास पोर्ट पर प्रहरी सा तना खड़ा था। जब सब क्रूस पर गये तो सभी की आँखें आश्चर्य से खुली रह गयीं। सम्भवतः सभी के लिये यह प्रथम अनुभव था। आठ तल ऊँचे इस जहाज में तो अपना एक अलग संसार ही था। सैकड़ों केबिन, दो डाइनिंग हाल लायब्रेरी, कैसीनो, लांज, स्वीमिंग पूल सभी कुछ तो था । इस नये संसार में यदि कोई खो जाये तो उसे ढूँढना ...Read More

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यूँ ही राह चलते चलते - 4

यूँ ही राह चलते चलते -4- कोच आया तो अपनी आयु को भूल कर कोच में आगे सीट के सभी दौड़ पडे़। सब सीट लेने में व्यस्त थे पर वान्या की दृष्टि बस यशील और अर्चिता को ढूँढ रही थी । वह मन ही मन पछता रही थी कि जाते समय वह यशील के साथ क्यों नहीं गयी । तभी उसने देखा कि अर्चिता अपने मम्मी पापा के साथ आ रही है उसके मन के तनाव में अचानक ढील आ गयी। वह व्यर्थ ही न जाने क्या क्या कल्पना करके आशंकित थी।पर दूसरे ही क्षण उसने स्वयं को सावधान ...Read More

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यूँ ही राह चलते चलते - 5

यूँ ही राह चलते चलते -5 - लेवेरियान के पोर्ट पर क्रूस से उतर कर सब बाहर आये। निमिषा सचिन से कहा ‘‘ आज तो तुम मेरे पाँवों की फोटो ले लो जो चार दिनों बाद धरती पर आये हैं’’। सचिन ने कहा ‘‘ गनीमत है धरती पर आये तो ’’। संजना हँस पड़ी।फोटो की बात पर ऋषभ को अचानक मान्या-महिम की याद आ गयी उसने कहा ’’ वो अपना हीरो हीरोइन कहाँ गया‘‘? संजना ने कहा ’’ तुम्हे टेंशन की जरूरत नहीं वो अपना काम कर रहा है ‘‘ अनुभा ने मुड़ कर देखा तो सच में महिम ...Read More

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यूँ ही राह चलते चलते - 6

यूँ ही राह चलते चलते -6- आज का दिन रोम के नाम था, सबसे पहले सबको कोलोसिमय दिखाने की थी। रोम के नाम पर ही अनुभा का मन इतिहास की गलियों में भटकने लगा और कोलोसियम का चित्रों मे देखा रूप आँखों के सामने आ गया। आज उसे प्रत्यक्ष देखने को मिलेगा यह सोच कर ही वह रोमांचित हो गयी। उसने पढ़ा था कि रोम लगभग 3000 वर्ष पुराना शहर है प्राचीन काल में यह 7 पहाड़ियों पर बसा था । रास्ते में सुमित ने सबकी परीक्षा लेने के उद्देश्य से पूछा ‘‘ आप लोग बताइये आप लोग कोलोसियम ...Read More

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यूँ ही राह चलते चलते - 7

यूँ ही राह चलते चलते -7- सुमित ने सबको वहाँ से आगे चलने के लिये कहा, अगला पड़ाव था फाउन्टेन । दुकानों से सजी एक गली को पार करके सब ट्रेवी फाउन्टेन पहुँचे, व हाँ पहुँच कर सचिन, निमिषा, संजना और ऋषभ सभी अति उत्साहित थे। यह जगह टाइबर नदी से लगभग 20 मीटर दूर बनी है तथा एक्वा डक्ट के द्वारा इस फव्वारे तक पानी आता है । रजत ने बताया कि इसे पोप क्लीमेंट ग्यारह ने निकोल साल्वी से बनवाना प्रारम्भ किया था और पेट्रो ब्रेसाई और बुइसेप पानिनी ने इसे पूरा किया था । 1730 से ...Read More

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यूँ ही राह चलते चलते - 8

यूँ ही राह चलते चलते -8- रोम में पहुँच कर शाम का समय खाली था तो सब गाने के में आ गये। निमिषा ने अपने मधुर गीत से सबको विभोर कर दिया, फिर क्या था सब एक-एक करके आगे आने लगे। अर्चिता की मम्मी ने कहा ’’अर्चू तू भी सुना न गाना तू भी तो गा लेती है ।‘‘ अर्चिता को शायद इसी क्षण की प्रतीक्षा थी थेाड़ी सी बनावटी ना नुकुर के बाद वह गाने को तैयार हो गई । उसने गाया ’’तुम जो आये जिंदगी में बात बन गई....................‘‘उसके हावभाव स्पष्ट बता रहे थे कि ये गाना ...Read More

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यूँ ही राह चलते चलते - 9

यूँ ही राह चलते चलते -9- आज का लक्ष्य वेनिस था, वही वेनिस जिसे शेक्सपियर के बहुचर्चित उपन्यास ’मर्चेन्ट वेनिस‘ ने लोकप्रिय बना दिया था। पानी पर बसा यह शहर दुनिया का अनोखा और एकमात्र शहर था । सुमित के साथ सब फ्लोरेंस से पियाजेल रोमा पहुँचे और वहाँ से वैपोरेट अर्थात छोटे पानी के जहाज पर बैठ कर ग्रैंड कैनाल आफ वेनिस के रास्ते से पानी पर बसे शहर वेनिस की ओर चले । संजना बोली ’’ये लोग भी अजीब हैं धरती छोड़ कर पानी पर बसना कुछ समझ नहीं आया।‘‘ सुमित ने बताया ’’ बिना बात के ...Read More

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यूँ ही राह चलते चलते - 10

यूँ ही राह चलते चलते -10- लौटते में सब को सुमित वेनिस की एक गली में ले गये, वह सँकरी पर साफ-सुथरी गली थी । वहाँ सुमित ने सबको अपनी अपनी मन पसंद की आइसक्रीम खिलाई।संजना ने मिन्ट फ्लेवर की ली, तो सचिन ने स्ट्राबेरी। अनुभा को रोम ट्रेवी फाउन्टेन पर खाई पिस्टाचियो बहुत भाई थी, अतः उसने वही ली, उसे देख कर रजत ने भी पिस्टाचियो आइसक्रीम ही ली। रोम की परम्परा के अनुसार यहाँ भी विशालकाय मूर्तियाँ बनी थीं । लौटते में सब स्क्वेअर पर रुके जो एक दूर तक फैला चैाक था, वहाँ एक ओर कुछ ...Read More

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यूँ ही राह चलते चलते - 11

यूँ ही राह चलते चलते -11- सुबह ग्रुप के काफी लोग लाबी में एकत्र हो गए थे सुमित ने ‘‘ आज हमारे ग्रुप में एक सदस्य और जुड़ गया है, ये यहाँ से टूर में सम्मिलित हो रहे हैं। आइये उनसे मैं आपका परिचय करवा दूँ।’’ ‘‘ ये हैं मिस्टर संकेत ।’’ सबने ताली बजा कर उसका स्वागत किया। रामचन्द्रन ने पूछा ‘‘ क्या आप यहीं रहते हैं ? ’’ ‘‘ नहीं नहीं मैं भी मुम्बई में ही रहता हूँ मुझे अपने बिजनेस के सिलसिले में यहाँ आना था तो मैंने इस तरह प्रोग्राम बनाया कि यहाँ से टूर ...Read More

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यूँ ही राह चलते चलते - 12

यूँ ही राह चलते चलते -12- वहीं पर एक टाइलोरियन पिलर था।मीना श्रेष्ठ जिन्होंने काफी समय से अपने ज्ञान ढिंढोरा नही पीटा था कहा ’’सुमित मुझे पता है इसे टाइलोरियन पिलर क्यों कहते हैं ‘‘ सुमित ने कहा ‘‘ बताइये ।‘‘ ’’जर्मनी से कुछ किलोमीटर पर एक राज्य था बवेरिया उसने 1703 में यहाँ आक्रमण कर दिया था तब टाइलोरियन ने विजय प्राप्त की थी उसी की स्मृति में यह खंभा बना अतः इसे टाइलोरियन पिलर कहते हैं।‘‘ ‘’गुड वेरी गुड ’’निमिषा ने सुमित के कुछ बोलने से पहले कहा।उसके कहने के तरीके पर सब हँस पड़ें । ‘‘वहाँ ...Read More

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यूँ ही राह चलते चलते - 13

यूँ ही राह चलते चलते -13- यशील सप्रयास वान्या से दूर रहने का प्रयास कर रहा था और इस को अर्चिता अनुभव कर रही थी । अवश्य संकेत के आने से यशील वान्या से विमुख हो गया है उसने अंदाज लगाया। उसका मन किया कि वह संकेत के चारों ओर धन्यवाद का ढेर लगा दे। उसने ईश्वर को धन्यवाद दिया, आज उसे विश्वास हो गया था कि सच्चा प्यार सफल होता ही है । वह उसी आनन्द में पूरी तरह डूब उतरा रही थी । संकेत ने वान्या से पूछा ‘‘तुम्हें कौन सी ज्यूलरी पसंद आयी ?’’ ‘‘ क्यों ...Read More

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यूँ ही राह चलते चलते - 14

यूँ ही राह चलते चलते -14- कारवाँ चल पड़ा धरती के स्वर्ग स्विटजरलैंड । सुबह ठीक आठ बजे ही उपस्थित थे ब्रेकफास्ट करने के लिये, मानो स्विट्जरलैंड में व्यतीत होने वाला एक क्षण भी गँवाना उन्हें मंजूर न था। अपना सामान बाँध कर के उन्होने कोच में रखा और बाहर खड़े होकर विभिन्न तरह की चर्चाओं में व्यस्त हो गये। आज संजना ने नारंगी अनारकली सूट पहना था तो निमिषा ने स्लीवलेस टाप और कैप्री पहना था, मीना श्रेष्ठ ने आसमानी चिकन की कुर्ती और ट्राउजर्स पहने थे यानि कि चारों ओर रंग ही रंग बिखरे थे। सभी प्रफुल्ल्ति ...Read More

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यूँ ही राह चलते चलते - 15

यूँ ही राह चलते चलते -15- रजत तो बस के बाहर के अप्रतिम सौंदर्य में खोये थे, यह अस्वाभाविक नहीं था चारों ओर दूर दूर तक फैली ऊँची नीची ढलानों पर छायी हरियाली मानो, धरती अपनी हरी चुनरिया हवा में लहरा-लहरा कर अपने में मगन नाच रही हो। दूर पर धरती रूपी गोरी के प्रहरी देवदार जैसे वृक्ष सावधान की मुद्रा में तने खड़े थें। कही-कहीं स्वस्थ भूरे या काले चकत्तों वाली धवल गायें देख कर अनायास ही आभास होता कि अभी कहीं से चितचोर मुरलीधर की वंशी की मधुर तान भी सुनाई पड़ जाएगी। वो लोग ज्यूरिख की ...Read More

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यूँ ही राह चलते चलते - 16

यूँ ही राह चलते चलते -16- ज्यूरिख से सब एंजलबर्ग गये । राह में सुमित ने सदा की तरह माइक पकड़ा और उन जगहों के इतिहास भूगोल से परिचित कराने लगा । सुमित ने पूछा’’ क्या आप बता सकते हैं बर्ग का क्या अर्थ है ‘‘। निमिषा बोली ’’बर्ग तो पता नही हाँ बर्गर जरूर याद आ रहा है ‘‘। यह सुन कर सब हँसने लगे। मीना ने कहा ‘‘सुमित आप बताइये ।‘‘ सुमित ने बताया ’’ बर्ग का अर्थ पहाड़, एंजिलबर्ग अर्थात एंजिल का पहाड़ ‘‘ सच में वह सौंदर्य का प्रतिरूप देवियों का पहाड़ ही लग रहा ...Read More

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यूँ ही राह चलते चलते - 17

यूँ ही राह चलते चलते -17- ’’ अरे भाई मैडम आप भी आ जाओ आपकी फोटो लें ले नहीं कहोगी कि एक महिम है मान्या की इतनी फोटो ले रहा है और एक तुम ‘‘ श्रीनाथ ने कैमरा निकालते हुए गीता से कहा। ’’ आप तो बस एक बात के पीछे ही पड़ जाते हैं ‘‘ गीता ने नाराज होते हुए कहा पर साथ ही फोटो खिंचवाने के लिये पोज बना कर खड़ी हो गयी। उसकी इस अदा पर श्रीनाथ कंधे उचकाते हुए कैमरा क्लिक करने लगे। उन्हे देख रहे अनुभा और रजत एक दूसरे को देख कर अर्थपूर्ण ...Read More

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यूँ ही राह चलते चलते - 18

यूँ ही राह चलते चलते - 18 - सुबह-सुबह सब लोग ठीक आठ बजे सर्दी का सामना करने के पूरी तरह लैस हो कर तैयार थे। सभी ने कोट जैकेट मफलर, दस्ताने पहन रखे थे। ठंडा मौसम और वो वादियाँ अनुभा के होंठो पर बरबस ही ये पंक्तियाँ आ गई ’ ये वादियाँ ये हवाएँ बुला रही हैं हमें .............‘ रजत यह सुन कर धीरे से बोले ’’हुम्म आज तो बड़े मूड में हो ‘‘ और अनुभा सकपका कर चुप हो गई। सब लोग कोच से जंगफ्रो रेलवे स्टेशन गये जो दुनिया का सबसे ऊँचाई पर बना रेलवे स्टेशन ...Read More

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यूँ ही राह चलते चलते - 19

यूँ ही राह चलते चलते -19- तभी संजना ने आवाज दी ‘‘आंटी इधर आइये देखिये कितना अद्भुत दृश्य है चारों फोटोग्राफी छोड़ कर उस गैलरी से बाहर खुले स्थान पर गये। वहाँ सच ही अवर्णनीय दृश्य था। चारों ओर बर्फ ही बर्फ थी ।यहाँ तक कि आकाश से भी बर्फबारी हो रही थी। जब वो सब वहाँ पहुँचे तो कुछ देर भी वहाँ खड़ा होना मुश्किल हो रहा था हाथ बिल्कुल सुन्न हो गये थे। आँखे पलकों पर बर्फ गिरने से बन्द हुई जा रही थी। कुछ ही क्षणेां में उस बर्फबारी का सामना करना कठिन हो गया और ...Read More

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यूँ ही राह चलते चलते - 20

यूँ ही राह चलते चलते -20- अगले दिन सबको 10000 फीट की ऊँचाई पर माउंट टिटलिस जाना था । मना रहे थे कि आज बर्फबारी न हो और धूप निकल आये क्योंकि सुमित ने बताया था कि माउंट टिटलिस पर तरह तरह के बर्फ के खेल होते हैं और वह तो तभी संभव था जब मौसम साफ होता । चुलबुली निमिषा सुमित से बोली ‘‘सुमित प्लीज आप कुछ करिये कि आज बर्फबारी न हो ’’मानों मौसम सुमित का गुलाम हो। सुमित ने भी उसी अंदाज में कहा ‘‘ ठीक है मैं अभी भगवान से बात करता हूं ’’ सब ...Read More

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यूँ ही राह चलते चलते - 21

यूँ ही राह चलते चलते -21- आज उन्हें स्विटजरलैंड से आगे के सफर के लिये निकलना था चार दिन कर भी मन नहीं भरा था। उनका वश चलता तो वहीं डेरा जमा लेते। पर समय की गति को कौन रोक सकता है आगे तो जाना ही था। एक बार फिर सबने अपना अपना सामान बाँधा और चल पड़े एंजिलबर्ग के बाद के अगले पड़ाव यानि कि जर्मनी की ओर। रास्ते में एक झील पड़ी जिसका आधा पानी नीला और आधा हरा था। अनुभा को प्रयाग का गंगा-यमुना का संगम याद आ गया जहाँ एक ओर से गंगा का मटमैला ...Read More

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यूँ ही राह चलते चलते - 22

यूँ ही राह चलते चलते -22- महिम ने सुमित से पूछा ’’ मैं ने सुना है कि यहाँ के झरने स्पा के लिये, ढलान विन्टर खेलों के लिये और मानव निर्मित कैनाल पानी के खेलों के लिये विश्व प्रसिद्ध है और जर्मनी में काफी लोकप्रिय भी है।‘‘ मान्या बोली ’’ आ माई गाड !पानी में खेलना तो मुझे बचपन से बहुत पसंद है। ‘‘ पर सुमित ने उनकी आशाओं पर पानी फेरते हुए कहा ’’ हमारे पास इतना समय नहीं है कि उसका आनन्द उठा सकें ‘ ’’ काश हम पानी में खेल पाते तो कितना मजा आता‘‘ अर्चिता ...Read More

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यूँ ही राह चलते चलते - 23

यूँ ही राह चलते चलते -23- यात्रा का अगला लक्ष्य था फ्रांस और फ्रांस में भी सपनों का शहर कल की बहस के बाद आज जब सुमित बोलने खड़े हुये तो सब चुप हो गये और तन्मयता से उनकी बात सुनने लगे ’’ पेरिस को रोमन लोगों के द्वारा राजधानी बनाया गया परन्तु उसके पूर्व यहाँ पेरिजी नामक जाति के लोग रहते थें और उन्ही के नाम पर इसका नाम पेरिस पड़ा । ‘‘ ‘‘यह सेन नदी पर बसा है न ?’’ऋषभ ने पूछा। ‘‘यस वेरी गुड ‘‘ सुमित ने प्रसन्न होते हुए कहा ‘‘आप लोगों को यूरोप के ...Read More

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यूँ ही राह चलते चलते - 24

यूँ ही राह चलते चलते -24- सब टावर के सिक्योरिटी गेट तक पहुँच गये थे। सिक्योरिटी चेक के बाद लिफ्ट से ऊपर गये टावर के केवल दो तल तक ही जाना संभव था । पर वही इतना ऊँचा था कि वहाँ से सम्पूर्ण पेरिस का दृश्यावलोकन किया जा सकता था। अद्भुत मनोरम दृश्य था। टावर से उतर कर सब लोग टावर के एक ओर दूर तक फैले मैदान में दूर जा कर फोटो लेने लगे जिससे उस विशाल टावर की पूरी ऊपर तक फोटो ले सकें । अनुभा और रजत भी काफी दूर तक आ गये थे। दो नों ...Read More

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यूँ ही राह चलते चलते - 25

यूँ ही राह चलते चलते -25- उसके बाद उनका काफिला पेरिस के नेशनल म्यूजियम गया जो विश्व में सबसे है और यू आकार का है । इसके अतिरिक्त उन्होने नास्टरडम चर्च भी देखा ।रास्ते में गोल्डेन फ्लेम दिखाई दिया, जो अमेरिका की स्टेचू आफ लिबर्टी का रेप्लिका है । सुमित ने बताया कि जहाँ पर गोल्डेन फ्लेम है उसके ठीक नीचे बनी टनेल में ब्रिटिश की राजकुमारी, लेडी डायना की दुर्घटना हुई थी। यह सुन कर सभी लेडी डायना के एक्सीडेंट की चर्चा करने लगे। कोई पत्रकारों को दोषी मान रहा था जिनके पीछा करने के कारण डायना ने ...Read More

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यूँ ही राह चलते चलते - 26

यूँ ही राह चलते चलते -26- आज सब बेल्जियम की राजधानी ब्रूसेल्स में थे । ‘‘सर यहाँ की भाषा है’’ चंदन ने पूछा। ‘‘फ्रेंच इंगलिश और फ्लेमिश भाषा बोलते हैं यहाँ ’’ सुमित ने बताया। ‘‘ पर मैंने तो सुना था कि यहाँ की भाषा ब्रूसेल्वा है ’’ सचिन ने कहा। ‘‘ आप ने ठीक सुना बू्रसेल्वा यहाँ की स्थानीय भाषा है। ’’ ‘‘सुना तो यह भी है कि यहाँ की स्टेला बीयर और चाकलेट भी प्रसिद्ध है’’ वान्या ने यशील को सुनाते हुए कहा। उसका प्रयास व्यर्थ नहीं गया यशील ने सुना भी और सराहा भी । अब ...Read More

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यूँ ही राह चलते चलते - 27

यूँ ही राह चलते चलते -27- यात्रा लगभग पूरी होने को थी अगला पड़ाव नीदरलैंड था।वहाँ की राजधानी एम्स्टर्डम के मार्ग में कतार में पवन चक्कियाँ दिखायी पड़ रही थीं। यह इस देश की राष्ट्रीय हेरिटेज और यह खेती विद्युत उत्पादन, फर्नेस ब्लो करने और पम्प के लिये प्रयोग होती हैं। निश्चय ही यह यूरोप के सुन्दरतम देशों में से एक है। जब उनका कोच होटल एन एच एम्स्टर्डम के सामने रुका तो सबने ताली बजा कर सुमित की प्रशंसा की और उसको धन्यवाद दिया इतने भव्य होटल में रुकवाने के लिये। होटल का गलियारा ही बहुत बड़ा और ...Read More

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यूँ ही राह चलते चलते - 28

यूँ ही राह चलते चलते -28- नीदरलैण्ड मात्र अपनी प्राकृतिक सुन्दरता और यहाँ के लोगों के कलात्मक रुचि के ही नहीं जाना जाता है वरन् ईश्वर ने इस धरती को और भी सुन्दर बनाने के लिये ऐसा मौसम दिया है कि यहाँ दूर-दूर तक फूलों की और विशेषकर ट्यूलिप की बहार दिखायी देती है। नीदरलैंड के वातावरण में नमी बहुत है जो ट्यूलिप जैसे फूलों के लिये वरदान है। उनका कोच क्यूकेनहाफ गार्डेन जाने के लिये तैयार था । आज वान्या का जन्मदिन था । लता जी ने बस में सबको चाकलेट बाँटी, सबने हैप्पी बर्थडे गा कर वान्या ...Read More

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यूँ ही राह चलते चलते - 29

यूँ ही राह चलते चलते -29- यात्रा अपने अंतिम पड़ाव पर आ गयी थी अब उस देश को जाना जिसका राज्य कभी इतनी दूर तक विस्तृत था कि उनके राज्य में कभी सूर्य डूबता ही नहीं था। जी हां अन्तिम पड़ाव था ब्रिटेन की राजधानी लन्दन। अगले दिन वापस जाना था। सुमित ने कहा ‘‘अब हमारा कोच शिप आफ ब्रिटैनिका स्टैनालाइन से लन्दन जाएगा ।’’ ऋषभ ने कहा ‘‘ कोच जाएगा मतलब, क्या हमारा कोच शिप पर जाएगा ?’’ ‘‘जी हाँ हमारा पूरा कोच शिप पर जाएगा आप लोग कोच से निकल कर शिप के केबिन में रहेंगे और ...Read More

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यूँ ही राह चलते चलते - 30

यूँ ही राह चलते चलते -30- सुमित ने मेट्रो ट्रेन और स्टेशन तक जाने का रास्ता बता दिया और स्वतंत्र कर दिया घूमने के लिये। अर्चिता ने यशील से पूछा तुम्हारा कहाँ जाने का इरादा है ?’’ ‘‘हम तो पहले लंदन आई फिर मैडम टुसाड का म्यूजियम देखने जाएँगे’ ’यशील ने कहा। ‘‘ और तुम भी वहीं चलोगी ’’ यशील ने साधिकार कहा। अर्चिता को उसका यह अधिकार जताना अच्छा लगा उसने इठला कर कहा ‘‘ अगर मेरा मन न हो तो?’’ ‘‘ तो जहाँ तुम जाओगी वहीं मैं भी चला जाऊँगा’’ यशील ने बेचारगी से कहा, दोनो हँस ...Read More

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यूँ ही राह चलते चलते - 31 - अंतिम भाग

यूँ ही राह चलते चलते -31- आज यात्रा अपने किनारे पर आ चुकी थी, सब को वापस जाना था अन्तिम रात्रि को फेयरवेल डिनर था जहाँ सब की एक आलीशान पार्टी थी। इस पार्टी का वातावरण अद्भुत था । इतने दिनों के अपन- पराये, क्षेत्रवाद आदि का भेद भूल कर सब वापस जाने से पहले अति भावुक हो गये थे। सब एक दूसरे से संपर्क करने के लिये मोबाइल नम्बर, ईमेल, आई-डी, पता आदि का आदान-प्रदान कर रहे थे। कुछ लोग तो इतने भावुक हो गये थे कि बिछुड़ने की सोच कर उनकी आँखें नम हो रही थीं तो ...Read More