पुरूस्कार व्यथा

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धिक्कार है सुशील ! ,लेखक जमात, अपने -अपने पुरूस्कार लौटा रहे है तेरे पास लौटाने के लिए कुछ भी नहीं है .... तुमने क्या ख़ाक लिखा..... जो साहित्य-बिरादरी में स्थापित नहीं हुए तेरे लिखे पर पुरुस्स्कार देने वालो की नजर ही नहीं गई ... कम से कम ,एक अदद छोटे-मोटे पुरूस्कार मिलने की गुंजाइश तो पैदा हुई होती ......