अनजाने लक्ष्य की यात्रा पे-6

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इस भाग को पढ़ने से पूर्व कृप्या इसके पूर्व पांचो भाग ज़रूर पढ़ें …… “तुम कह तो ठीक रहे हो ।“ उसने कहा “लेकिन वे भी तो हमसे अनभिज्ञ हैं । और अनभिज्ञ ही सबसे अधिक भयभीत और सबसे अधिक आक्रामक होता है । और यह भी सच है कि, अनभिज्ञता ही जिज्ञासा जगाती है और जिज्ञासा ही ज्ञान के पट खोलती है ।“ “तुम सच कह रहे हो मित्र । अब हमे प्रार्थना करनी चाहिये कि हमारे प्रति इनके मन मे पहले से कोई पूर्वाग्रह न हो । यदि ऐसा रहा तो हमे उनके पूर्वाग्रह को तोड़कर अपनी मित्रवत छवि गढ़नी होगी जो ज़रा दुःसाध्य है । क्योंकि नई छव