Mahek

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प्रिय पाठकगण, अपनी भावनाओं को शब्दों की लड़ियों मे पिरोकर, कविताओं के रूप में ‘महक’ संकलन को आपके समक्ष प्रस्तुत करते हुए, मैं अपार हर्ष का अनुभव कर रहा हूँ। यह मेरा प्रथम प्रयास है, अपने अनुभवों एवं विचारों को प्रस्तुत करने का, कविता भावनाओं एवं कल्पनाओं की उड़ान है। जो भावुक मन में उभरती है, और कवि मन उसे अपनी लेखनी से काग़ज पर उकेर देता है। विचार अनियंत्रित होते हैं, और अनायास ही मन में उभरते हैं, हम उनपर किसी भी प्रकार का प्रतिबंध नहीं लगा सकते। हम सिर्फ इन भावनाओं को महसूस कर सकते हैं, उनसे हम सीख ले सकते हैं तथा उन्हें अपने हृदय में आत्मसात कर सकते हैं। जिससे हम सदैव उन खट्टी-मीठी यादों के साथ जीवन जी सकते हैं मीठी यादों को याद कर हम पुलकित हो उठते हैं। तथा कढ़वी यादें हमें अवसादित कर देती हैं। इन कविताओं के माध्यम से मैं मृदु स्मृतियों को बार-बार याद करने, तथा कटु स्मृतियों को एक दुःस्वप्न की भाँति सदैव के लिए भूल जाने का संदेश देना चाहता हूँ। मेरी कुछ कविताएं जीवन में सफलता के ऊपर सीखी गई हैं। जिनसे आपको आशावादी सोच तथा सफलता एवं असफलता दोनो ही स्थितियों में समभाव रहकर अनवरत निष्काम कर्म करने की प्रेरणा मिलेगी। कुछ कविताओं के माध्यम से मैने अपने जीवन के हर संभव क्षण की अनुभूति कराने का प्रयास किया है। मेरी पहली कविता मेरी दृष्टि में संसार की सबसे खूबसूरत एवं स्नेह की प्रतिमूर्ति ‘मेरी माँ’ के ऊपर लिखी गई है। जिसकी दृष्टि में ३७ वर्षीय मैं अभी भी एक ‘छोटा बंटू’ ही हूँ। मैं सभी माताओं और उनकी ममता को हार्दिक प्रणाम करता हूँ। ज्यों-ज्यों बालक बड़ा होता जाता है, उसके भीतर इस समाज के अनेकों तथ्यों को उद्घाटित करने की उत्सुकता बढ़ती जाती है। यह उत्सुकता मूलतः दो रूपों में उभरकर सामने आती है, या तो दुनियाँ को देखने की या दुनियाँ को दिखाने की कि इस संसार का निर्माण उसी के नवीन विचारों एवं अलौकिक तर्कों के आधार पर हुआ है, उसी ने इस समाज के अनेकों दायरे निर्धारित किये हैं। बालक व्यस्क होता है और अपने कर्मक्षेत्र में प्रवेश करता है। यहीं से जीवन का सफर शुरू होता है। एक ऐसा अन्जान सफर जिसकी मंजिल तक पहुँचने में कितने पड़ाव आयेंगे किसी भी मुसाफिर को पता नहीं होता। इस सफर में अनेकों अनुभव होते हैं। जिसमें कभी कुछ खोने की पीड़ा तो कभी कुछ पाने की खुशी। जिंदगी के सफर में कभी-कभी कुछ ऐसे लम्हे भी आते हैं जिन्हें हम अपनी मंजिल समझ बैठते हैं और हमारा मन उन्हीं लमहों को सीने से लगाकर वहीं ठहरने को होता है, पर सफर रूक जाये, ठहर जाये ये संभव नहीं- यहाँ पर मुझे गुलज़ार साहब के गज़ल की कुछ पंक्तियाँ याद आ रही हैं – “वक्त रहता नहीं कहीं टिक कर, इसकी आदत भी आदमी सी है।“ वक्त रुकता नहीं, ठहरता नहीं और आदमी भी ठीक वक्त की तरह है हमेशा चलायमान परिस्थितियों से जूझता, समझौता करता जीवन के सफर में सदैव मंजिल की ओर अग्रसर रहता है। स्वप्न देखना हर इंसान के स्वभाव में शामिल है, हर व्यक्ति स्वप्न देखता है पर यह जरूरी नहीं कि सबके स्वप्न पूरे हो जायें। अंत में मैं कह सकता हूँ कि ये विचार यात्रा है। ये मेरा प्रथम प्रयास है अपने विचारों को शब्दों में रूपान्तरित करने का विचार विविध है, अनियोजित है, स्वभाविक है। अमित मिश्रा