सारा गाँव उन्हें कहता—सींक वाली ताई। बड़े भी, छोटे भी। सभी इसी नाम से बुलाते। सालवन गाँव में जब से ब्याह कर आई थीं ताई, तब से उनके गाँव का नाम सींक उनके नाम से जुड़ गया। ऐसा जुड़ा कि खुद अपना नाम तक उन्हें याद नहीं। कोई पचास बरस तो हो ही गए सींक वाली ताई को इस गाँव में आए। तब सोलह बरस की थीं। अब सत्तर से कुछ ही कम होंगी। इस बीच कौन-सा दुख नहीं झेला उन्होंने। पति किशोरीलाल फौज में थे। बड़े ही दिलेर और खुशमिजाज। हर कोई उनकी तारीफ करता। नई दुलहन बनकर सालवन गाँव में आईं सींक वाली ताई के वे सबसे खुशियों भरे दिन थे।