पांच व्यंग्य रचनाएँ

(18)
  • 13.9k
  • 3
  • 2.3k

मेरे ये व्यंग्य आज की विभिन्न सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक विसंगतियों पर करारा तंज़ करते हैं. ये व्यंग्य आपका मनोरंजन करने के साथ-साथ आपको आज के हालात के बारे में भी बहुत कुछ सोचने के लिए मजबूर करेंगे.