दर्द से जीत तक - भाग 8

कुछ महीने बाद...वही रोशनी, वही खुशी,लेकिन इस बार मंच नहीं — मंडप सजा था।सामने बैठी थी एंजल —सालों बाद, मुस्कुराती हुई, लाल जोड़े में सजी।ज़हन उसके सामने, हल्की मुस्कान के साथ।पंडित की आवाज़ गूंजी—“फेरे पूरे हुए, अब से तुम दोनों एक-दूसरे के जीवन साथी हो।”भाई ने उनके सिर पर हाथ रखा,उनकी आंखों में आंसू थे ।पर इस बार ये आंसू खुशी के थे ।गर्भ के थे ।उनकी मेहनत और लगन का ही तो फल था,की आज ज़हन सच मच उनके परिवार का हिस्सा बन गया।रात को सब चले गए थे।कमरे की मेज़ पर एंजल की डायरी खुली थी।आखिरी पन्ने पर