धूप का हल्का पीला रंग खेतों की मेड़ों पर फैल रहा था। कहीं दूर एक बच्ची मिट्टी से सनी किताब लेकर भागती हुई आ रही थी। उसके नंगे पाँवों से धूल उड़ रही थी, चेहरे पर मासूम पसीना, मगर आँखों में कुछ ऐसा तेज़ था जो उम्र से कहीं ज़्यादा बड़ा था। उसके हाथ में एक फटी हुई कॉपी थी, जिसमें उसने अपने बचपन के अक्षरों में लिखा था — “मैं देश के लिए कुछ करूंगी।”वो बच्ची थी — वैदही।गाँव के छोटे से घर में जन्मी, लेकिन सपने इतने बड़े कि आकाश भी छोटा लगे। चारों ओर फैले भ्रष्टाचार, अन्याय